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हाईकोर्ट ने दिया अहम आदेश, कहा- स्कूल फीस में राहत आपका कोई वैधानिक अधिकार नहीं, सौहार्दपूर्ण निपटाएं विवाद

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहोदर शुल्क योजना लाभ की प्रयोज्यता से संबंधित मुद्दे पर सुनवाई करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि छात्रों की फीस में स्कूल द्वारा दी गई राहत कुछ शर्तों के अधीन है। इसका अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा कोर्ट ने पक्षकारों को सौहार्दपूर्ण ढंग से विवाद सुलझाने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने आगे कहा कि क्योंकि शैक्षणिक सत्र 2023-24 खत्म होने वाला है, इसलिए इस सत्र में बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जा सकता है, लेकिन कोर्ट ने स्कूल को अगले सत्र यानी 2024-25 में बच्चों को फिर से एडमिशन देने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही दोनों पक्षकारों को एक दूसरे के खिलाफ दाखिल मामले तथा शिकायतों को वापस लेने का भी निर्देश दिया है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकल पीठ ने सत्येंद्र कुमार और दो अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया है। दरअसल याची के बच्चे डीपीएस, राजनगर, गाजियाबाद में पढ़ते हैं। स्कूल प्रशासन ने शैक्षणिक सत्र 2022-23 और 2024 के लिए कोविड-19 के कारण भाई-बहन की फीस में छूट दी, लेकिन स्कूल ने बच्चों की ओर से किसी भी अनुशासनात्मक दुर्व्यवहार के बाद योजना को वापस लेने का अधिकार सुरक्षित रखा है।

याची के अधिवक्ता का तर्क है कि भाई- बहन को शुल्क में राहत देने के बावजूद स्कूल द्वारा फीस की अतिरिक्त मांग की गई, इसलिए स्कूल के खिलाफ आइजीआरएस  पोर्टल पर और यूपी स्ववित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (फीस विनियमन) अधिनियम, 2018 के तहत जिला फीस नियामक समिति के समक्ष शिकायत दर्ज की गई, जिसके फलस्वरुप स्कूल पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया।

नतीजतन स्कूल ने याची बच्चों के नाम काट दिए। हालांकि स्कूल की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सहोदर शुल्क योजना समाप्त होने के बाद भी बच्चों की फीस नियमित रूप से जमा नहीं की जाती थी। इसके साथ ही फीस मांगने पर अभिभावकों ने शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार किया और समझौता वार्ता में उपस्थित भी नहीं हुए, इसलिए स्कूल ने बच्चों के नाम काटकर ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी कर दिए।

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