लोटस 300 परियोजना: धोखाधड़ी और गबन के आरोपियों के खिलाफ ईडी जांच के आदेश

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा में लोटस 300 परियोजना के फ्लैट खरीदारों को धोखा देने के लिए मैसर्स हैसिंडा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और मैसर्स थ्री सी यूनिवर्सल डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रमोटरों/निदेशकों निर्मल सिंह, सुरप्रीत सिंह सूरी और विदुर भारद्वाज को दोषी मानते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्रवर्तन निदेशालय को उन सभी निदेशकों/अधिकारियों तथा अन्य संस्थाओं के खिलाफ कार्यवाही करने का निर्देश दिया है, जिनमें हैसिंडा प्रोजेक्ट्स ने गबन का पैसा लगाया है। कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे बैंक ने हैसिंडा प्रोजेक्ट्स को 33 करोड़ रुपए का ऋण दे दिया, साथ ही कंपनी के खिलाफ दिवालिया याचिका दाखिल करने से पहले बैंक द्वारा निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटी का उपयोग क्यों नहीं किया गया।
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि नोएडा प्राधिकरण ने बिल्डर को एक विशेष रियायत दी थी, क्योंकि भूमि का आवंटन करते समय कोई अग्रिम राशि नहीं ली गई थी। अग्रिम राशि घर खरीदारों द्वारा जमा की गई बुकिंग राशि से भुगतान की जानी थी। तीनों निदेशकों ने 236 करोड़ रुपए और 636 करोड़ रुपए के कुल कोष में से 190 करोड़ रुपए का गबन करके सभी को धोखा देने की बड़ी साजिश के एक हिस्से के रूप में इस्तीफा दे दिया और देनदारी से बचने के लिए छोटे कर्मचारी को कंपनी का कठपुतली निदेशक बना दिया।
दरअसल, हेसिंडा प्रोजेक्ट्स कंपनी ने स्टोर कीपर आनंद राम को निदेशक के रूप में नियुक्त कर दिया। यह धोखाधड़ी स्पष्ट रूप से बैंक और जनता के साथ-साथ राज्य के साथ की गई है। कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराया, क्योंकि चूक का अंदाज़ा होने के बावजूद 2014 से पट्टे को रद्द करने या डिफॉल्ट राशि की वसूली के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। नोएडा प्राधिकरण ने प्रमोटरों को कंपनी के सभी फंडों को हड़पने और कंपनी को पूरी तरह से दिवालिया स्थिति में छोड़ने के लिए पर्याप्त समय दिया। अंत में कोर्ट ने प्राधिकरण को ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट/पार्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी करने और एक महीने के भीतर फ्लैट खरीदारों के पक्ष में त्रिपक्षीय समझौते और पंजीकृत डीड को निष्पादित करने का निर्देश दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने पारित किया।