खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबो को मिलने वाला मुफ्त अनाज अब खुलेआम बेचा व खरीदा जा रहा है
लखनऊ। मुफ्त का पांच किलो राशन अब लोगो को रास नहीं आ रहा है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबो को मिलने वाला मुफ्त अनाज अब खुलेआम बेचा व खरीदा जा रहा है। इन दिनों गलियों में सुबह से शाम तक कई बार आवाज आती है। मोटा गेहू और मोटा चावल बेच डालो। इन फेरी वालों की आवाजें सुनकर कई घरों के दरवाजे खुल जाते हैं। वह घरों में रखे हुए चावल और गेहूं इन फेरीवालों को बेच देते हैं। उन पैसों से कोई दुकान से आटा खरीदता है तो कोई खाने के लिए चांवल। या फिर दूसरी जरूरतों को पूरा करता है। घरों से बेचे जाने वाले यह गेहूं चावल कहां से आते हैं, पढ़ने वालों के मन में यही सवाल आएगा। तो हम आपको बताते हैं कि यह चांवल और गेहूं लोगों को कंट्रोल से मिलने वाले फ्री राशन का होता है। जिसे कई लोग बजाए खाने के बेच रहे हैं।
15 रुपए किलो बिक रहा गेहूं चावल
लोगों को फ्री में मिलने वाला राशन का गेहूं और चावल दोनों 15 रुपए किलो में फेरीवाले खरीद रहे हैं। इसे बेचने का सबसे बड़ा कारण लोग बता रहे हैं कि चावल इतना मोटा और खराब होता है कि बच्चे भी नहीं खाते। गेहूं कभी घुंन वाला होता है तो कभी कूड़ा इतना ज्यादा होता है कि इसे साफ करवाने में भी पैसे चले जाते हैं। ऐसे में कई लोग इस राशन को बेच कर दुकान से आटा चावल खरीदते हैं।
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चावल तो खाया ही नहीं
साआदतगंज में रहने वाले तनवीर जहां कहती हैं कि शुरू में तो ठीक राशन मिलता था लेकिन अब तो बेचना ही पड़ता है। चावल इतना मोटा और खराब होता है कि खाया ही नहीं जाता। हम इसे बेचकर दूसरे चावल या फिर उन पैसों का आटा ही खरीद लेते हैं। कई बार घर में एक भी पैसा नहीं होता तो इस राशन को बेचकर ही काम निकल जाता है। वहीं दरगाह रोड पर रहने वाले अनस कहते हैं कि महीने में दो बार राशन मिलता है। गेहूं चावल इतना खराब होता है कि हम दो महीने रख कर नहीं खा सकते हैं तो बेच देते हैं। बेचकर जो पैसे मिलते हैं उसका दुकान से सामान लेकर आते हैं। हम लाइन लगाकर कंधे पर राशन लेकर आते हैं लेकिन इतनी मेहनत के बावजूद अच्छा सामान नहीं मिलता। हमारे पास कई बार बेचने के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं होता। इसे खरीदने के लिए अब कई फेरीवाले आने लगे हैं।
दुबग्गा मंडी में जाता है यह राशन
पहले दाल बेचने के लिए गलियों में घूमने वाले सोनू ने बताया कि अब वह गेहूं और चावल खरीदने का काम कर रहे हैं। दाल अब ज्यादा बिकती नहीं है। सोनू ने बताया कि दिनभर में उन्हें कई कुंटल गेहूं और चावल मिल जाते हैं। बेचने वालों का कहना यही होता है कि गेंहू इतना खराब होता है कि उसे खाना ही मुश्किल होता है। सोनू ने बताया कि वह पूरा दिन घूम कर गेहूं चावल खरदते हैं और फिर उसे दुबग्गा मंडी में लेकर बेच देते हैं। हम 20 रुपए किलो में दोनों चीजें खरीदते हैं। मंडी में हमें कभी 17 रुपए किलो मिल जाता है तो कभी 18 रुपए किलो। ज्यादा पैसे तो हमें भी नहीं मिलते।
मजबूरी है इसे पकाना
कुल मिलाकर सरकार जिस राशन को मुफ्त में गरीबों को दे रही है वह ऐसा है कि खाने के बजाए लोग बेचने को मजबूर है। चाहे गरीब हो या कोई पैसे वाला घुंन वाला गेहूं कोई नहीं खा सकता। हां कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस राशन को खा कर ही अपनी जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं। मौलानगरी में रहने वाली रूबीना कहती हैं कि कई बार चांवलों से खराब महक आती है, गेहूं पिसने के बाद किरकिरा भी होता है लेकिन हम क्या करें इसे खाना हमारी मजबूरी है।