
भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच कई ऐसे महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं जो संबंधों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। जैसे कि 1960 की सिंधु जल संधि, जिसके अंतर्गत भारत और पाकिस्तान अपने-अपने जल संसाधनों का बंटवारा करते हैं। इसके अलावा, 1972 की शिमला समझौता और 1999 की लाहौर घोषणा भी दोनों देशों के बीच शांति बनाए रखने के लिए अहम रही हैं।
हाल ही में पाकिस्तान ने कुछ राजनीतिक और सैन्य घटनाओं के चलते इन समझौतों को खत्म करने की धमकी दी है। लेकिन यह पहली बार नहीं है—हर बार जब द्विपक्षीय तनाव बढ़ता है, पाकिस्तान इस तरह की गीदड़भभकी देता है। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत पर दबाव बनाना होता है। हालांकि, भारत ने हमेशा संयम और कानूनी रूप से जवाब दिया है।
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अगर पाकिस्तान वास्तव में कोई बड़ा समझौता तोड़ता है, तो इसका असर केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों पर ही नहीं, बल्कि पूरी दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिरता पर पड़ेगा। उदाहरण के लिए, सिंधु जल संधि तोड़ने से दोनों देशों के बीच जल संकट गहराने की आशंका है, जिससे खेती, बिजली और आम जनजीवन प्रभावित हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की इन धमकियों में ज़्यादातर दिखावा होता है, क्योंकि व्यावहारिक तौर पर इन समझौतों को तोड़ना उसके खुद के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है। फिर भी, भारत को इस तरह की धमकियों को गंभीरता से लेते हुए अपनी कूटनीतिक और सुरक्षा रणनीति को मजबूत रखना चाहिए।