
लखनऊ: प्रदेश में जिन प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या 50 से कम होगी उन परिषदीय स्कूलों का जल्द ही विलय किया जाएगा। इस संबंध में सोमवार को शासन की ओर से एक आदेश भी जारी कर दिया गया। अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा दीपक कुमार की ओर से प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों व जिला राज्य परियोजना अधिकारियों के नाम जारी आदेश में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में वहां के परिषदीय प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम है, उनका विलय किए जाने की प्रक्रिया शुरू की जाए।
आदेश में कहा गया है कि इससे विद्यालयीय शिक्षा व्यवस्था में नवाचार एवं सुधार की अपार संभावनाएँ उत्पन्न होगी। भौतिक एवं शैक्षणिक संसाधनों जैसे विद्यालय भवन, कक्षा-कक्ष, आईसीटी उपकरण, विभिन्न शैक्षणिक सामग्री आदि का समुचित और साझा उपयोग होने से शिक्षा व्यवस्था अधिक प्रभावशाली एवं विद्यार्थी केन्द्रित हो सकेगा। विद्यालयों में उपलब्ध संसाधनों के समन्वित उपयोग से न केवल शैक्षिक प्रक्रियाओं को समृद्ध किया जा सकेगा अपितु शिक्षक सहभागिता तथा प्रशासनिक कुशलता से विद्यार्थियों की अधिगम उपलब्धियों को भी बढ़ाया जा सकेगा।
शिक्षक संघटन कर रहे विरोध
उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाई स्कूल शिक्षक संघ लखनऊ के जिला कोषाध्यक्ष मनोज कुमार मौर्य ने कहा कि पहले परिषदीय स्कूलों में प्रधानाध्यापकों के पद समाप्त कर दिए गए अब स्कूलों को मर्ज करके शिक्षकों के पद भी समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। परिषदीय विद्यालय उसी गांव में होते है। बच्चा आसानी से विद्यालय जाकर शिक्षा ग्रहण करता है। विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के बजाय स्कूल के दूसरे गांव में मर्ज होने पर उस गांव का बच्चा दूसरे गांव पढ़ने कैसे जाएगा। बच्चों के अभिभावक विभिन्न दैनिक कार्यों में लगे रहते हैं और अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाते हैं ऐसे में अगर बच्चा दूसरे गांव पढ़ने जाएगा तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा। इससे ग्रामीण परिवेश के बच्चों की शिक्षा पर काफी बुरा असर आएगा।
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला मीडिया प्रभारी हरिशंकर राठौर ने बताया कि पूरे देश में गुणवत्तापूर्ण आधारभूत शिक्षा की मांग को देखते हुए 6 से 14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा के लिए ग्रामीण परिवेश में बच्चों के आवास से एक किलोमीटर पर प्राथमिक विद्यालय और तीन किलोमीटर पर उच्च प्राथमिक विद्यालय को स्थापित किया गया था। ताकि बच्चा उसी गांव के परिषदीय विद्यालय में पढ़ सके। जारी आदेश में सामाजिक आर्थिक भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया है। यदि स्कूलों को मर्ज कर दिया गया तो गरीब किसान मजदूर के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे और देश में साक्षरता दर में कमी आएगी। साथ ही साथ जो रोजगार के अवसर है वह भी समाप्त होंगे और कहीं ना कहीं निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण परिवेश के जो गरीब बच्चे हैं उनके अभिभावकों का शोषण किया जाएगा।