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दीपिका की फिल्म गहराइयां की इस डायरेक्टर का है यूक्रेन से गहरा नाता, बताया – जंग के मैदान में डटीं हैं दादी

इस समय पूरी दुनिया का ध्यान रूस और यूक्रेन की लड़ाई पर है. कोई नहीं चाहता कि जंग हो फिर भी जंग ने दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है. रूस और यूक्रेन की लड़ाई में सैकड़ों लोगों की जान गई है और यूक्रेन के कई शहर पूरी तरह से तबाह हो गए हैं. भारत में यूक्रेन की फिल्ममेकर डर गई इन दिनों काफी चर्चा में है क्योंकि उन्होंने हाल ही में दीपिका पादुकोण की फिल्म गहराइयां में काम किया है जहां उन्होंने इंटिमेट सींस का डायरेक्शन किया था. गहराइयां का हिट गाना डूबे का डायरेक्शन भी उन्हीं का है. इसके अलावा वो 20 से ज्यादा फिल्में डायरेक्ट और लिख चुकी हैं.

पहली बार बॉलीवुड में किसी सुपरस्टार की फिल्म में इंटिमेट सींस के डायरेक्शन के लिए इंटिमेसी डायरेक्टर को साइन किया गया था. इंटिमेसी डायरेक्टर डर गई एक बार फिर चर्चा में हैं. फिल्म मेकिंग में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 22 साल यूक्रेन की राजधानी कीव में गुजारे हैं. उनका परिवार अभी भी वहां रहता है. फिलहाल उन्हें अपने परिवार और करीबी मित्रों की चिंता सता रही है क्योंकि राजधानी कीव में लगातार हवाई हमलों के सायरन बज रहे हैं.

दादी जंग लड़ने को तैयार

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया उनके माता-पिता ने राजधानी कीव (KIVY) को छोड़ने की कोशिश की लेकिन सड़कों पर बहुत ज्यादा ट्रैफिक होने की वजह से वहां से निकलने में असफल रहे. उनका गांव राजधानी से 45 मिनट की यात्रा करके पहुंचा जा सकता है. उनकी दादी जिनकी उम्र 78 साल है उन्होंने अपने गांव को छोड़ने से मना कर दिया है. उनका कहना है कि अगर हम इस देश को छोड़कर भाग जाएंगे तो इस जंग को कौन लड़ेगा.

डर गई टेडटॉक्स की स्पीकर भी हैं

हथियार उठाने को तैयार परिवार

उनकी मां और उनका भाई घर की महिलाओं और बच्चों को छोड़ने के लिए बॉर्डर तक गए थे. उसके बाद वह अपने गांव वापस लौट आए क्योंकि गांव में उनकी दादी अकेली हैं और वो उन्हें खतरे के माहौल और वहां नहीं छोड़ना चाहते हैं. अपने देश को बचाने के लिए यह सब लोग जंग में उतरने के लिए भी तैयार हैं और हथियार उठाने में भी ने कोई गुरेज नहीं है. वह 8 से 10 घंटे बंकरों में छुपे रहते हैं लेकिन यहां से किसी भी कीमत पर जाने के लिए तैयार नहीं हैं. खतरे के बीच चाहे उनकी जान ही क्यों ना चली जाए.

हजारों लोगों की जान गई

फिल्मीमेकर का कहना है कि उन्होंने जर्मनी में अपने दोस्तों से बात की थी जो वहां डिप्लोमेट हैं. उन्होंने आश्वासन दिया कि रूस कभी भी यूक्रेन पर खासकर राजधानी कीव में बमबारी नहीं करेगा लेकिन उनका यह दावा खोखला साबित हुआ. जब से रूस ने हमला किया है तब से उसके सैनिक लगातार मिसाइलों और हवाई हमलों के जरिए यूक्रेन को तहस-नहस करने में लगे हैं. हर जगह तबाही का मंजर है और इन हमलों में अनगिनत लोगों की जानें गई हैं. रूस की बर्बरता का यह आलम है कि उन्होंने स्कूलों और अस्पतालों तक को निशाना बनाया है जबकि रूसी सेना लगातार यह दावा करती रही है कि वह रिहायशी इलाकों में हमला नहीं कर रहे. यूक्रेन से आ रही तस्वीरें रूसी सेना के दावों से एकदम उलट हैं जिन्हें देखकर पूरी दुनिया सकते में है कि 21वीं सदी में कैसे कोई देश इतना बर्बरतापूर्ण आचरण कर सकता है. जाहिर है जिनके परिवार के सदस्य और मित्र इस संकट की घड़ी में फंसे हैं उनके लिए इस वक्त दिन-रात काटना कितना भारी पड़ रहा होगा.

भारतीय छात्र भी बने निशाना

भारत की टीवी चैनल्स लगातार रूस यूक्रेन के बीच हो रही इस जंग की रिपोर्टिंग कर रहे हैं. भारत सरकार ने यूक्रेन में रह रहे किस हजार लोगों को निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा चला रखा है. जिसके जरिए छात्रों और वहां रहने वाले लोगों को एयरलिफ्ट करके भारत वापस लाया जा रहा है लेकिन कुछ छात्र भी ऐसे हैं जो यूक्रेन से सही सलामत भारत नहीं पहुंच सके हैं. 2 छात्रों की मृत्यु हो गई है और 1 छात्र घायल है. भारत सरकार लगातार जल्द से जल्द इन सब लोगों को सुरक्षित लाने के इंतजामों में लगी है सरकार ने रूस और यूक्रेन दोनों ही सरकारों से बात करके भारतीयों की सुरक्षा के लिए अपनी चिंता जाहिर की है और उन्हें इस बात के लिए भी आग्रह किया है कि किसी भी भारतीय को इस जंग में नुकसान ना पहुंचे.

डर गई ने बताया कि यूक्रेन से बहुत से लोग उनसे मदद की अपील कर रहे हैं करीब 130 छात्रों ने राजधानी कीव से ईमेल करके उनसे मदद की गुहार लगाई थी जिस ईमेल को उन्होंने विदेश मंत्रालय को फॉरवर्ड किया जिसके बाद उनकी मदद की जा सकी.

डर का मानना है की वह जितनी यूक्रेनियन है उतनी ही अब भारतीय भी हो चुकी है वह अपने करियर के लिए मुंबई में पिछले कई सालों से काम कर रही हैं और अब बॉलीवुड में बहुत सारे लोगों ने जानते भी हैं. डर गई चाहती हैं कि यह जंग जल्द से जल्द खत्म ताकि वह फिर से अपने देश को पैरों पर खड़ा होता देख सकें. उनका मानना है कि जंग से कभी किसी का भला नहीं हुआ. ऐसे में राष्ट्र अध्यक्षों को अपनी जिद छोड़कर जनता की भलाई के लिए काम करना चाहिए.

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