उत्तर प्रदेशलखनऊ

फिर बिखरने लगा अखिलेश के सपनों का ‘गुलदस्ता’

  • कांग्रेस, बसपा, रालोद, सुभासपा जैसी पार्टियों से गठबंधन के बाद भी नहीं मिली सत्ता

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में हाल में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अखिलेश यादव ने जो अपने सपनों का गुलदस्ता सजाया था, वह अब बिखरने लगा है। यह पहली बार नहीं हुआ है। वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा और 2022 का विधानसभा चुनाव, अखिलेश यादव के अब तक के सभी प्रयोग विफल रहे हैं। प्रयोग सफल न होने के साथ ही गठबंधन के साथी भी हाथ खींच ले रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक दशक में बहुत कुछ बदलाव हुआ है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सबसे बड़े दल के रूप में सपा उभर कर सामने आयी। मुलायम सिंह ने सत्ता खुद संभालने के बजाए अखिलेश को सौंप दी। अखिलेश मुख्यमंत्री बने। दो वर्ष बाद ही लोकसभा के आम चुनाव हुए। उस चुनाव में सपा 80 में से केवल पांच सीटें ही जीत पायी। पार्टी के अंदरूनी हालात खराब होने लगे। राज्य में पांच साल सरकार चली लेकिन इस दौरान पार्टी पर भी मजबूत पकड़ बनाने के चक्कर में पारिवारिक कलह इस कदर बढ़ी कि अखिलेश की जड़ें हिल गयीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। बावजूद इसके बड़ी हार का सामना करना पड़ा। सपा महज 47 सीटों पर सिमट कर रह गयी। अखिलेश के नेतृत्व की यह दूसरी सबसे बड़ी हार थी।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने लीक से हटकर अपने धुरविरोधी बसपा प्रमुख मायावती से हाथ मिलाया। इस गबंधन से बसपा शून्य से 10 सीटों पर पहुंच गयी, लेकिन सपा अपने खाते में सिर्फ पांच सीटें ही बरकरार रख सकी। इसके बाद अखिलेश के नेतृत्व में एक बार फिर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा गया। वह चुनाव भी सपा हार गयी। हर चुनाव में खास बात यह रही कि नये लोगों के साथ गठबंधन किया, लेकिन हर चुनाव के बाद उनके सहयोगी दलों ने साथ छोड़ दिया। इस बार भी सहयोगी सहयोगी दल नाराज बताए जा रहे हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर नाराज हैं।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि सपा मुखिया ने राजभर के बेटे अरविंद राजभर को विधान परिषद में भेजने का आश्वासन दिया था, लेकिन इसको पूरा नहीं किया। इसी प्रकार अन्य सहयोगी दलों से भी नाराजगी की बात सामने आ रही है। गठबंधन के साथियों की बात तो सामने आ रही है। सपा मुखिया अखिलेश यादव का बयान इस मुद्दे पर नहीं आया है। देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन के साथियों को साथ रखने के लिए अखिलेश क्या रणनीति अपनाएंगे।

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