उत्तर प्रदेशलखनऊ

उपचुनाव : जातीय गणित के अहंकार में हार गयी सपा

  • आगे अस्तित्व बचाने के लिए अखिलेश यादव को निकलना होगा बाहर

लखनऊ। एक ऐसी पार्टी, जिसके पास 80 लोक सभा सीटों में बसपा से गठबंधन के बावजूद पांच सीटें थीं। उसमें भी उप चुनाव में दो सीटें खोने का डर था। इसके बावजूद पार्टी मुखिया का किसी लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने न जाना। यहां तक कि जिसको उन्होंने खुद छोड़ा, उनके घर की सीट मानी जाती रही है, वहां एक बार भी नहीं पहुंचे। इस पर तो सिर्फ यही कहा जा सकता है कि उप्र में समाजवादी पार्टी की हार सिर्फ अखिलेश यादव के अहंकार की हार है।

इस उप चुनाव में यह भी देखने को पहली बार ही मिला कि सत्ता पक्ष इन दो सीटों को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है और जिसे अस्तित्व बचाना है, वह आराम फरमा रहा है। शायद अखिलेश यादव इसी ख्याल में रह गए कि आजमगढ़ में मुस्लिम और यादव मिलकर पचास फीसदी मतदाता हैं,जो समाजवादी पार्टी से इतर नहीं जा सकते। वहीं रामपुर में 50 फीसदी से ज्यादा मुसलमान मतदाता हैं। ऐसे में अखिलेश यादव इस गर्व में बैठे रहे कि इस माहौल में मुसलमान और यादव के बीच भाजपा अपनी पैठ कतई नहीं बना सकती।

वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने रामपुर और आजमगढ़ की सीट को जीतने के लिए पूरा जोर लगा दिया। स्वयं योगी आदित्यनाथ इन दोनों सीटों के लिए प्रचार अभियान में लगे रहे। आखिर जनता के मूड को तो कोई भांप नहीं सकता। विशेषकर आजमगढ़ को देखा जाए तो जहां स्वयं दो बार लोकसभा चुनाव अखिलेश यादव जीते हैं। उन्होंने खुद इस सीट को खाली किया था और वहां पर एक बार भी चुनाव में न जाना शायद आम जन को खल गया। कुछ लोगों को यह भी लगा कि अखिलेश यादव की इस चुनाव में दिलचस्पी नहीं है और वे स्वयं धर्मेंद यादव की जीत देखना नहीं चाहते।

उधर, अखिलेश यादव के इस बर्ताव से धीरे-धीरे धारणा बनती जा रही है कि अखिलेश यादव एसी में बैठकर राजनीति करने वालों में प्रमुख हैं। बसपा प्रमुख मायावती की तरह वे भी मैदान में नहीं जाना चाहते, जबकि सपा हमेशा लड़ाकू पार्टी के रूप में जानी जाती रही है। यहां तक कि सत्ता में रहते हुए भी मुलायम सिंह यादव के इशारे पर समाजवादियों ने प्रेस के खिलाफ हल्ला बोल दिया था और सूबे के एक बड़े अखबार के दफ्तरों में जमकर तोड़फोड़ की थी। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अखिलेश यादव का आगे का रास्ता और कठिन होने जा रहा है। यदि उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनको अपनी पकड़ मजबूत करनी है तो उन्हें अपने पुराने ढर्रे पर आना होगा।

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