जानशीन-ए-रसूले खुदा, शियों के पहले इमाम का निकला शबीहे ताबूत,लोगों ने नम आंखों से दिया अपने इमाम को पुरसा

लखनऊl
ग़मगीन माहौल में शहरे अज़ा लखनऊ मेँ उठा 21,वीं रमज़ान का जुलूस।
रुस्तम नगर स्थित नजफ़ से शान ओ शौकत के साथ उठा हज़रत अली अ०स०का शबीहे ताबूत ।
गगन भेदी नारों,हैदर मौला या अली मौला की सदाओं से गूँजा पुराना शहर।
एक सौ बावन वर्षीय पुराना है शबीहे ताबूत का जुलूस,1870, से उठता आरहा है,हसन मिर्ज़ा का यह जुलूस-ए-ताबूत।
मौला अली की याद में हर साल 21,रमज़ान की सुबह नजफ़ से ऐतिहासिक जुलूस निकाला जाता है।
मालूम हो कि हज़रत अली अ०स० प्राफिट मोहम्मद साहब के दामाद एवं अबू तालिब के पुत्र थे।
जुलूस में लाखों की संख्या में शिया समुदाय के अलावा हर धर्म के लोग करते हैं शिरकत।
इस जुलूस में बड़ी संख्या में महिलाए और बच्चे शिरकत कर हज़रत अली को देते है पुरसा।
हज़रत अली ने अपना सारा जीवन जन सेवा में बिताया, उन्होंने जनसेवा में कभी मज़हब देखकर कोई काम नहीं किया,रात के अंधेरे में जब लोग सो रहे होते थे तब अपनी गरीब रियाया की छुपकर मदद करते एवं उनको खुद रोटी पहुंचाया करते थे।
हज़रत अली इल्म का समंदर थे वे लोगों को इल्म बांटते और उनका पसंदीदा काम इल्म बांटना ही था वह लोगों से कहते थे जो प्रश्न पूछना है पूछ लो,सिवाए मौत के,नहजुल बलाग़ा उनके खुतबों और खतों की एक किताब है,जिसका अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
यह जुलूस सआदतगंज स्थित रुस्तम नगर नजफ़ से उठकर काज़मैन, गिरधारा सिंह स्कूल,मंसूर नगर चौराहा, बल्लौचपूरा चौराहा होते हुए
बाजारखाला,एवरेडी से निकलता हुआ तालकटोरा कर्बला पहुँच कर संपन्न होता है।
जुलूस के मद्देनज़र प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किये,चप्पे चप्पे पर पुलिस के आला अधिकारी पैनी नज़र रखे रहे जिस से की किसी भी अनहोनी से निपटा जा सके।
पुलिस प्रशासन सहित जिले के आला अधिकारी भी मौके पर रहे मुस्तैद।