
कलीमुल्लाह
भटनी-देवरिया। जुमा यानी शुक्रवार को हम छोटी ईद भी कहते हैं और यूँ भी जुमा की ख़ास अहमियत होती है जिस दिन हर एक मुसलमान नमाज़ पढ़ने मस्ज़िद में जाता है शायद ही कुछ लोग अपवाद स्वरूप न जाते हों। जब जुमा रमज़ान के पवित्र महीने में हो तो उसकी अहमियत और ज़्यादा बढ़ जाती है। 30 के रोज़े (उपवास), में कुल चार हफ्ते बोते हैं और करीब करीब 4 या 5 जुमा पड़ता है और जो जुमा ईद के पहले आखिरी वाला होता है वही अलविदा जुमा होता है।
इस दिन मस्जिदों में काफी अच्छी ख़ासी नमाजियों की भीड़ होती है। लोग नहा धो कर साफ सुथरे कपड़े पहन कर व इतर लगाकर मस्ज़िद को आते हैं और अलविदा जुमा की नमाज़ पढ़ते हैं। जुमा के ही दिन अल्लाह तआला ने आदम अलैहि इस्लाम को पैदा किया था। इसी दिन उन्हें ज़मीन पर उतारा भी था। रोज़े महीने का अलविदा जुमा रमजान जाने की तस्दीक करता है अर्थात रमजान इसके बाद कुछ ही दिन बचा होता है। अलविदा जुमा को मस्ज़िद के पेश ईमाम बहुत सारी दीनी बातें बताते हैं व ईद की नमाज़ का वक़्त भी सभी की सहमति से तय करते हैं।