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आज लोगों से गांव, पनघट, खेत सब छूट गए हैं पीछे : उदय चन्द्र परदेशी

  • लोक कलाकार उदय चन्द्र परदेशी की गीतों की हुई रिकार्डिंग

लखनऊ। लोक एवं जनजाति कला, संस्कृति संस्थान तथा उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी लखनऊ की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित ‘सम्पदा’ कार्यक्रम में शनिवार को प्रयागराज के लोक कलाकार उदय चन्द्र परदेशी के पारम्परिक गीतों की रिकार्डिंग एवं दस्तावेजीकरण किया गया।

इस मौके पर लोक गायक उदय चन्द्र परदेशी ने कहाकि लोक संगीत हमारे देश की आत्मा है और हमारी संस्कृति के प्राण हैं। यह लोकगीत ही है जो हमारे अस्तित्व की पहचान कराते हैं। बदलते दौर में लोकगीतों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है। आज जब लोगों से गांव,पनघट,खेत सब पीछे छूट गया है। संयुक्त परिवारों में विघटन आ गया है तो लोक कलाकार ही है, जिन्होंने समय-समय पर समाज को और परम्पराओं से जोड़ने का काम कर रहे हैं।

कलाकार उदय चन्द्र परदेशी ने अपने कार्यक्रम की शुरूआत देवीगीत गीत ‘सुमिरो मै ठइयां सुमिरौ मै ठइयां’…,गाया। उसके बाद संस्कार गर्भाधान का गीत ‘पहिला महीना जब से लागा…, प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने क्रम से जनेऊ गीत ‘इमली के पेडवा सुरूहुर…, चुमावन गीत ‘साठी के चाउर हारा रे दुबरे,… जतसार गीत ‘नरम-रम हथवा पथरवा…, होमगीत गीत ‘काहेन के री लकड़िया… सहित अन्य गीतों की रिकार्डिं कराई गई।

लोक गायक उदय चन्द्र परदेशी का जन्म 5 फरवरी, 1949 को प्रयागराज के मलाकराज में हुआ। श्री परदेशी अपने जीवन में लोक गायन के अलावा शास्त्रीय, उप शास्त्रीय एवं लेखन-हिन्दी गीत, संगीत निर्देशन कंपोजर आदि का कार्य किया गया। श्री परदेशी को उ.प्र.संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया चुका है। इसके अलावा उन्होंने आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के प्रयागराज एवं लखनऊ केंद्र से प्रस्तुतियां दी है।

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