सिराथू से केशव मौर्य की हार की समीक्षा में जुटा भाजपा हाइकमान
- भाजपा को जिताने के लिए करते रहे घमासान, अपनी सीट का नहीं रखा ध्यान
- स्थानीय भाजपा संगठन व जनप्रतिनिधियों का नहीं मिला सहयोग
- ब्राह्मण, पासी व कुर्मी समाज को अन्य जाति के नेता का उभार रास नहीं आया
- जातीय समीकरण केशव के खिलाफ रहा
कौशांबी। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का सिराथू विधानसभा सीट से चुनाव हार जाना न सिर्फ भाजपा को बल्कि अन्य दलों को चकित कर रहा है। मजबूत जनाधार वाले भाजपा के इस बड़े नेता ने वर्ष 2017 में भाजपा को बम्पर बहुमत से सत्ता में वापसी करवाई थी। सिराथू की जनता भी अपने केशव के हार जाने से हतप्रभ है। आइये जानते हैं कुछ प्रमुख कारण।
अन्य जगहों पर रैलियों में व्यस्त रहे और अपना क्षेत्र भूल गये
केशव मौर्य पूरे प्रदेश में संगठन के निर्देशानुसार भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में रैली व जनसभाओं में व्यस्त रहे। संगठन के निर्देशानुसार सिराथू के अतिरिक्त पूरे प्रदेश में लगातार प्रचार अभियान में शामिल रहे। यहां तक की 27 फरवरी सिराथू में मतदान के दिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बस्ती में जनसभा और वाराणसी में कार्यकर्ता सम्मेलन में शामिल हुए।
सिराथू को समय नहीं दे पाए डिप्टी सीएम
नामांकन के बाद केशव अपने क्षेत्र को समय ही नहीं दे पाये। वे भाजपा के स्टार प्रचारकों में से एक रहे। उनके कंधों पर भाजपा संगठन ने भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार व जनसभाओं की बड़ी जिम्मेदारी डाली थी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। केशव प्रसाद मौर्य के कंधों पर 400 सीटों पर प्रचार का जिम्मा था, उन्होंने इसे बखूबी निभाया भी। यहां तक कि सिराथू में 27 फरवरी को मतदान के दिन भी वह अन्य प्रत्याशियों के प्रचार व जनसभाओं में व्यस्त रहे। पूर्व से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक उन्होंने पूरा प्रदेश मथ डाला। सिराथू में उनका कम समय दे पाना भी उनकी हार का प्रमुख कारण बना।
संगठन से नहीं मिला अपेक्षित सहयोग
केशव की हार में स्थानीय भाजपा संगठन का सहयोग न मिलने की चर्चा पूरे सिराथू में है। सिराथू में भाजपा के जनप्रतिनिधियों का सहयोग न मिलना व अपने लोगों को केशव के पक्ष में न जुटा पाने की बात भी सामने आ रही है। स्थानीय संगठन ने केशव के चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। भाजपा संगठन के लोगों व भाजपा के जनप्रतिनिधियों से भी चुनाव के दौरान सहयोग नहीं मिला। जमीनी स्तर पर संगठन के नेताओं की सक्रियता न के बराबर रही।
ब्राहम्ण, पासी व कुर्मी समाज को अन्य जाति के नेता का उभार रास नहीं आया
पुराने इलाहाबाद वर्तमान प्रयागराज और कौशांबी की जो समाजिक स्थितियां है उसमें अगड़ों में ब्राह्मण, पिछड़ों में पटेल और दलितों में पासी समाज का वर्चस्व रहा है। लेकिन मौर्य समाज से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य के डिप्टी सीएम बनने से और उनका कद बढ़ा जो इन समाज के नेताओं को नागवार गुजरा। केशव के लगातार बढ़ते कद से तीनों (ब्राहम्ण, पासी और कुर्मी ) समाज के बड़े नेता अंदर ही अंदर नाखुश रहे।
आपको बताते चलें कि सिराथू सीट पर सर्वाधिक वोट पासियों का है। यहां 70 हजार से अधिक वोट पासी है। पासी समाज के बड़े नेता इन्द्रजीत सरोज बगल की सीट से सपा के टिकट से चुनाव लड़ रहे थे और ये पासी वोट वो सिराथू में सपा की ओर ले जाने में सफल रहे। उत्तर प्रदेश में पासी समाज बसपा का वोटर माना जाता रहा है लेकिन बसपा के कमजोर और स्थानीय भाजपा संगठन की अनदेखी से सपा की ओर मुड़ गया।
बसपा का कोर वोटर सिराथू में सपा की झोली में गया
इस बार 2022 के चुनाव में यह देखा गया है कि जहां-जहां बसपा कमजोर लड़ी है, बसपा का प्रत्याशी 10 हजार के आस पास वोट पाए है, वहां भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई है। बसपा को कोर वोटर भाजपा की तरफ शिफ्ट हुआ है। लेकिन सिराथू एक ऐसी सीट थी जहां बसपा का प्रत्याशी 10 हजार के आस पास पाया लेकिन वहां बसपा का कोर वोटर विशेषकर पासी भाजपा की तरफ शिफ्ट न होकर बगल की सीेट से लड़ रहे पासी समाज के बड़े नेता इंद्रजीत सरोज के प्रभाव के कारण सिराथू में भी सपा के पाले में चला गया जो दिग्गज नेता की हार का कारण बना। सिराथू में अब ये चर्चा आम है कि पासी समाज को भी गैर जाति के केशव का आगे बढ़ना मंजूर नहीं हुआ।
जिला कौशांबी के सिराथू विधानसभा में जातीय समीकरण
- राजपूत- 35000
- जाटव (चमार)- 25000
- ब्राह्मण मतदाता- 42000
- वैश्य- 40000
- सैनी (मौर्य)- 35000
गैर जाटव
- बाल्मीकि- 10000 मतदाता
- खटीक- 15000
- धोबी- 30000
- कोली- 20000
- नट- 20000
अतिपिछड़े मतदाता
- पाल- 20000
- कश्यप-2000
- नाई- 2000
- मुस्लिम-40000
- यादव- 30000
कुल- 3,66,000 मतदाता