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अकबरनगर में ध्वस्तीकरण पर हाईकोर्ट की रोक : कहा-‘मोहल्ले वासियों को पुनर्वास योजना में आवेदन के लिए दें समय’

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अकबर नगर में ध्वस्तीकरण पर रोक लगा दी है. न्यायालय ने पहले वहां के लोगों के पुनर्वास के लिए लाई गई योजना के तहत आवेदन करने के लिए चार सप्ताह का समय देने का आदेश दिया है. न्यायालय ने कहा है कि वहां के लोग उक्त योजना में आवेदन देने के लिए स्वतंत्र होंगे. न्यायालय ने अपने आदेश में आगे कहा है कि इस प्रक्रिया के पश्चात पुनर्वास योजना को अपनाने वाले लोगों द्वारा कब्जा छोड़ देने पर, एलडीए उनके परिसरों को अपने कब्जे में ले सकता है.

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सैयद हमीदुल बारी समेत 46 व्यक्तियों की कुल 26 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. इसके पूर्व सुबह कोर्ट के बैठते ही, याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने अनुरोध किया कि अकबर नगर में एलडीए और प्रशासन द्वारा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई है, लिहाजा उनकी याचिकाएं जो गुरुवार को सूचीबद्ध न हो पाने के कारण रजिस्ट्री में ही हैं, उन्हें मंगाकर सुनवाई कर ली जाए. मामले की गम्भीरता को देखते हुए, न्यायालय ने याचिकाओं पर सुनवाई की.

याचियों की ओर से मुख्य रूप से दलील दी गई कि याची 40-50 वर्षों से उस स्थान पर कब्जे में हैं और तब यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 लागू भी नहीं हुआ था. लिहाजा उक्त कानून के तहत याचियों को बेदखल करने की कार्रवाई नहीं की जा सकती, वहीं राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थाई अधिवक्ता शैलेन्द्र कुमार सिंह और एलडीए की ओर अधिवक्ता रत्नेश चंद्रा उपस्थित रहे. एलडीए की ओर से दलील दी गई कि याची विवादित संपत्तियों पर अपना स्वामित्व नहीं सिद्ध कर सके हैं. कहा गया कि वहां के लोगों के पुनर्वास की भी व्यवस्था की गई है, जिसके लिए 70-80 लोगों ने पंजीकरण भी कराया है.

न्यायालय का आदेश : न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि ‘प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि याची समेत तमाम लोग प्रशनगत क्षेत्र में बिना किसी स्वामित्व के कब्जे में हैं, समय बीतने के साथ वह कब्जे में रहे और वहां नगर निगम की सुविधाएं और सरकारी सड़कें भी पहुंची. न्यायालय ने पाया कि कुछ लोगों से तो नगर निगम बकाएदा कर भी वसूल रही है और वहां एक सरकारी स्कूल भी है. न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि याची अपना स्वामित्व सिद्ध कर पाने में अब तक असफल रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपना कब्जा सिद्ध किया है, भले ही वह अनाधिकृत कब्जा है.

‘इतनी जल्दी क्यों है’ : न्यायालय ने आगे कहा कि ‘वहां अपेक्षाकृत गरीब लोग रह रहे हैं और यह समझ नहीं आ रहा कि इन गरीब लोगों के खिलाफ ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करने की इतनी जल्दी क्यों है, वह भी ठंड के इस मौसम में बिना पुनर्वास योजना को वास्तविक तौर पर लागू किए. न्यायालय ने कहा कि जीवन के अधिकार में जीविकोपार्जन का अधिकार समाहित है और यह राज्य का दायित्व है कि वह अपने दूसरे उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए लोगों के इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन न करे.

न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 22 जनवरी की तिथि नियत की है. इस दौरान सरकार व एलडीए याचिका पर अपना जवाब भी दाखिल कर सकते हैं. मामले से सम्बंधित दो अन्य याचिकाएं भी शुक्रवार को सुनवाई के लिए नियत हैं.

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