
जापान ने अपनी सैन्य नीति में बड़ा बदलाव करते हुए पहली बार अपनी जमीन से मिसाइल परीक्षण किया है। यह ऐतिहासिक कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब चीन की सैन्य गतिविधियाँ पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चिंता का कारण बनी हुई हैं। इस परीक्षण को न सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि माना जा रहा है, बल्कि यह जापान की रक्षा नीति में आक्रामक रुख का भी संकेत देता है। रिपोर्ट के मुताबिक, जापान अब जमीन से लॉन्च होने वाली क्रूज मिसाइलों की तैनाती की योजना भी बना रहा है, जो किसी भी खतरे की स्थिति में तेज और प्रभावी जवाब दे सकेंगी। यह पूरा घटनाक्रम चीन को सीधा संदेश देने जैसा है कि जापान अब चुप नहीं बैठेगा।
जापान का यह मिसाइल परीक्षण कई मायनों में अहम माना जा रहा है। यह पहला मौका है जब जापान ने अपनी धरती से इस तरह की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया है। अब तक जापान का रुख काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन चीन की लगातार बढ़ती सैन्य ताकत और ताइवान पर आक्रामकता को देखते हुए जापान अपनी रक्षा नीति को पुनः परिभाषित कर रहा है।
इस परीक्षण के जरिए जापान ने यह साफ कर दिया है कि वह अब सिर्फ अमेरिका पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि खुद की सैन्य क्षमताएं भी विकसित करेगा। जापान की योजना है कि 2026 तक वह लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों को भी तैनात कर सके, जो दुश्मन की सीमाओं तक सटीक हमला करने में सक्षम होंगी।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह मिसाइल परीक्षण सिर्फ एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है। जापान ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में तनाव लगातार बढ़ रहा है। चीन के सैन्य अभ्यास और आक्रामक गतिविधियों ने पूरे क्षेत्र की स्थिरता को खतरे में डाल दिया है।
जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने भी अपने बयान में कहा है कि देश की सुरक्षा सर्वोपरि है और यदि क्षेत्रीय ताकतें संतुलन बिगाड़ती हैं, तो जापान उन्हें जवाब देने में सक्षम रहेगा। इस बयान के बाद चीन की ओर से तीखी प्रतिक्रिया की आशंका जताई जा रही है।
इस घटनाक्रम का असर सिर्फ चीन-जापान संबंधों पर ही नहीं, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर पड़ेगा। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों की नजरें अब जापान की अगली सैन्य रणनीति पर टिकी हैं। यह परीक्षण एक नई शक्ति संतुलन की शुरुआत का संकेत भी हो सकता है।