
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में 24 साल पुरानी कानूनी लड़ाई का पटाक्षेप करते हुए एक महिला को उसका न्याय दिलाया है। इस लंबे मुकदमे में महिला ने अपने पति की मृत्यु के बाद भी पेंशन की लड़ाई जारी रखी। अदालत ने माना कि महिला को उसके पति की सेवा के बदले में पेंशन की एकमुश्त राशि मिलनी चाहिए। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो वर्षों तक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं। यह न्यायपालिका की संवेदनशीलता और जनहित में लिए गए निर्णयों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह मामला उस समय का है जब एक सरकारी कर्मचारी की मृत्यु हो गई थी, और उनकी पत्नी ने पेंशन की राशि प्राप्त करने के लिए विभाग से कई बार गुहार लगाई। लेकिन विभागीय प्रक्रिया, तकनीकी अड़चनें और अनदेखी के चलते उन्हें वर्षों तक सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा। थक हारकर उन्होंने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। इस मुकदमे के दौरान ही महिला के पति का देहांत हो गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार 24 वर्षों तक न्याय के लिए संघर्ष करती रहीं।
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मामला न्यायालय में लंबे समय तक चला, लेकिन आखिरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न सिर्फ महिला की याचिका को वैध माना बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी की सेवा के बदले मिलने वाली पेंशन उसकी पत्नी या परिवार का अधिकार है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि सरकारी विभागों को ऐसे मामलों में अनावश्यक देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे आम नागरिक का न्याय प्रणाली पर भरोसा कमजोर होता है।
इस फैसले ने यह भी सिद्ध कर दिया कि यदि व्यक्ति अपने हक के लिए धैर्य और संकल्प के साथ लड़ता है, तो अंततः उसे न्याय अवश्य मिलता है। कोर्ट का यह आदेश न केवल महिला के लिए राहतभरा है, बल्कि ऐसे हजारों लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी है जो वर्षों से सरकारी प्रक्रिया में उलझे हुए हैं।
अब जब कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दे दिए हैं कि महिला को पेंशन की एकमुश्त राशि दी जाए, तो यह निर्णय अन्य मामलों में भी एक मिसाल कायम करेगा। इस निर्णय से विभागों पर भी यह दबाव बनेगा कि वे समय पर निर्णय लें और पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाएं।