नई दिल्ली। देश में कुल 561 कैदी ऐसे हैं, जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई है। यह पिछले दो दशकों में किसी साल के अंत का सर्वोच्च आंकड़ा है। 2015 के बाद से ऐसे कैदियों की संख्या में 45.71 प्रतिशत वृद्धि हुई है। एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है।
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली में ‘प्रोजेक्ट 39ए’ द्वारा प्रकाशित ‘भारत में मृत्युदंड: वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट’ के आठवें संस्करण में कहा गया है कि निचली अदालतों ने 2023 में 120 दोषियों को मौत की सजा सुनाई, लेकिन इस साल 2000 के बाद से अपीलीय अदालतों द्वारा मौत की सजा कायम रखने की दर सबसे कम देखी गई।
उच्चतम न्यायालय ने 2021 के बाद दूसरी बार किसी वर्ष में किसी दोषी की मौत की सजा बरकरार नहीं रखी। रिपोर्ट के अनुसार, “सर्वोच्च न्यायालय ने 2023 में किसी दोषी की मौत की सजा की पुष्टि नहीं की। उच्च न्यायालयों में, हत्या के साधारण मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केवल एक दोषी की मौत की सजा की पुष्टि की। इस प्रकार 2023 में 2000 के बाद से अपीलीय अदालतों द्वारा मौत की सजा की पुष्टि की दर सबसे कम रही।”
रिपोर्ट में कहा गया है, “2023 के अंत में, निचली अदालतों ने 120 दोषियों को मौत की सजा सुनाई और भारत में 561 कैदी ऐसे हैं, जिन्हें मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। इसके चलते 2023 में लगभग दो दशकों में मौत की सजा पाने वाले कैदियों की संख्या सबसे अधिक रही।’’
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार इस सदी की शुरुआत के बाद से दूसरी बार ऐसे कैदियों की संख्या सबसे अधिक है। इसके अलावा वर्ष 2023 में 2015 के बाद से मृत्युदंड पाने वालों की संख्या में 45.71% की वृद्धि देखी गई है।