नांदी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उम्मीद जताई है कि विश्व हिंदी सम्मेलन आने वाले समय में हिंदी का महाकुंभ बनेगा और हिंदी को विश्व बनाने में लगे हिंदी प्रेमियों को महत्वपूर्ण मंच उपलब्ध कराएगा। जयशंकर ने यहां आयोजित बारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी को विश्व बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह ज़रूरी है कि सभी हिंदी प्रेमी मिलजुल कर काम करें। फ़िजी के इस प्रमुख शहर में 15 से 17 फ़रवरी तक तीन दिन चले सम्मेलन में तीस से अधिक देशों के एक हज़ार से अधिक हिंदी विद्वानों व लेखकों ने भाग लिया।
समापन समारोह में फ़िजी के उप प्रधानमंत्री बिमान प्रसाद भी मौजूद थे और उन्होंने सम्मेलन को फ़िजी के लिए ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री सितवेनी रबूका के नेतृत्व वाली सरकार देश में हिंदी को मज़बूत करने के लिए सभी संभव कदम उठा रही है। अपने राजनीतिक विरोधियों पर निशाना साधते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि पिछले 10-15 वर्षों में हिंदी को यहां कमजोर करने की कोशिशें की गईं। जयशंकर ने फ़िजी नेतृत्व से बुधवार को हुई चर्चा का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री रबूका को आश्वस्त किया है कि भारत फ़िजी के साथ सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूती देने के लिए कदम उठाएगा। जयशंकर ने खुलासा किया कि प्रधानमंत्री रबूका ने दोनों देशों के बीच दोस्ती की तुलना के लिए सत्तर के दशक में आई बॉलीवुड की बेहद लोकप्रिय फ़िल्म ‘शोले’ का ज़िक्र किया।
विदेश मंत्री के अनुसार, प्रधानमंत्री रबूका ने उन्हें बताया कि ‘शोले’ उनकी सबसे पसंदीदा फ़िल्म है और उसका गाना ‘ये दोस्ती, हम नहीं तोड़ेंगे …. ’ उन्हें विशेष रूप से प्रिय है। समापन समारोह में देश – विदेश में हिंदी के प्रचार, प्रसार व विकास के लिये काम कर रहे 25 विद्वानों व संस्थाओं को सम्मानित भी किया गया। विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने बताया कि सम्मेलन के दौरान 10 सत्रों में विभिन्न मसलों पर गंभीर चर्चा हुई और यह निष्कर्ष निकल कर आया कि हिंदी काफ़ी सशक्त है और तकनीक के साथ सामंजस्य बैठाने में सक्षम है।
सम्मेलन के अंत में जारी प्रतिवेदन में कहा गया कि 15 फरवरी से 17 फरवरी तक प्रशांत क्षेत्र के फिजी देश के नांदी नगर में आयोजित हुआ 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन सफल रहा। इसमें कहा गया कि 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सम्मिलित भारत और फिजी सहित विश्व के अन्य देशों के सभी प्रतिनिधियों का यह समवेत मत है कि कृत्रिम मेधा (एआई) जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां का हिंदी के माध्यम से प्रयोग करके भारतीय ज्ञान एवं पारंपरिक प्रणालियों को विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या तक पहुंचाया जा सकता है।
इसमें कहा गया कि प्रतिस्पर्धा एवं प्रतियोगिता पर आधारित विश्व की व्यवस्था को सहकार, समावेशन और सह-अस्तित्व पर आधारित वैकल्पिक दृष्टि प्रदान करने में हिंदी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। प्रतिवेदन के अनुसार, 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का स्पष्ट मत यह भी है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पूरी पृथ्वी ही परिवार है) और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (सभी प्राणी सुखी रहें) के आधार पर अंतरराष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वैश्वित बाजार का निर्माण किया जा सकता है। इसमें कहा गया कि इस सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के इस्तेमाल को बढ़ाने तथा हिंदी शिक्षण में आधुनिक प्रणालियों एवं संसाधनों का प्रभावशाली तरीके से उपयोग किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।