
Lippan Art, जिसे कच्छ क्षेत्र में “मिट्टी की सजावटी कला” के रूप में जाना जाता है, गुजरात की एक समृद्ध और जीवंत परंपरा है। इसे पहले केवल ग्रामीण घरों की दीवारों पर गाय के गोबर, मिट्टी और छोटे शीशों से बनाया जाता था, जिसका उद्देश्य केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि घर को गर्मी और ठंड से बचाना भी था। यह कला मुख्य रूप से मालधारी समुदाय द्वारा विकसित की गई थी, जो अपने घरों को धार्मिक प्रतीकों, प्रकृति और पारिवारिक धरोहरों से सजाते थे। समय के साथ यह कला अब भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सराही जा रही है और आधुनिक इंटीरियर डिज़ाइन का हिस्सा बन चुकी है।
Lippan Art की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह प्राकृतिक और टिकाऊ सामग्री से बनाई जाती है। परंपरागत रूप से इसे गाय के गोबर, मिट्टी (मुलायम लोई मिट्टी), और छोटे-छोटे शीशों (मिरर वर्क) से तैयार किया जाता है। गोबर और मिट्टी मिलाकर एक तरह का पेस्ट तैयार किया जाता है, जिससे दीवारों पर उभार बनाकर आकृतियाँ उकेरी जाती हैं। इसके बाद उनमें शीशे सजाए जाते हैं जो रोशनी में चमकते हैं और घर को रोशन भी रखते हैं। यही कारण है कि यह कला पर्यावरण के अनुकूल भी मानी जाती है।
इस कला का एक धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू भी है। पारंपरिक घरों में Lippan Art के माध्यम से लोक देवताओं, सूर्य, चंद्रमा, वृक्ष, मोर, और फूलों की आकृतियाँ बनाई जाती थीं, जिन्हें शुभ और रक्षा का प्रतीक माना जाता था। महिलाएं यह काम बड़ी बारीकी और श्रद्धा के साथ करती थीं, और यह कला मां से बेटी तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती रही है।
आज के समय में Lippan Art सिर्फ ग्रामीण घरों तक सीमित नहीं है। अब यह कला आधुनिक दीवारों, होटलों, रिसॉर्ट्स और यहां तक कि आर्ट गैलरीज़ में भी देखी जा सकती है। कई आर्टिस्ट्स और डिजाइनर इस पारंपरिक कला को कैनवस, MDF बोर्ड और प्लाईवुड पर बनाकर ग्लोबल प्लेटफॉर्म तक पहुँचा रहे हैं। इससे न केवल यह कला पुनर्जीवित हुई है, बल्कि स्थानीय कारीगरों को भी रोजगार और पहचान मिली है।