
आजकल कई माता-पिता इस समस्या से जूझते हैं कि उनका बच्चा हर बात में ना-नुकुर, टालमटोल या जिद करने लगता है — फिर चाहे वह खाना हो, पढ़ाई हो, या समय पर सोना। यह व्यवहार अगर समय रहते सुधारा न जाए तो आगे चलकर बच्चे की आदत और पढ़ाई दोनों पर बुरा असर डाल सकता है। अच्छी बात ये है कि सिर्फ 5 आसान पेरेंटिंग टिप्स अपनाकर आप बच्चे के व्यवहार में एक महीने के अंदर सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। इनमें सबसे जरूरी है — बच्चे को डांटना नहीं, समझाना और सुनना। जब आप बच्चे की बातें गंभीरता से सुनते हैं, तो वह खुद को समझा हुआ महसूस करता है और सहयोग करने लगता है।
बच्चों में “ना” कहने की आदत अक्सर तब बनती है जब उन्हें बार-बार आदेश देने के अंदाज़ में कुछ करने को कहा जाता है। बच्चों को autonomy यानी अपनी मर्ज़ी से कुछ करने का मौका देना ज़रूरी होता है। अगर आप कहें “तुरंत होमवर्क करो”, तो बच्चा टाल सकता है। लेकिन अगर आप कहें, “तुम्हें होमवर्क के लिए 15 मिनट चाहिए या 30?”, तो उसे लगेगा कि फैसला उसी का है — और वो ज़्यादा सहजता से काम करेगा।
एक तय दिनचर्या बनाना भी बहुत ज़रूरी है। बच्चे को रोज़ाना के काम जैसे खाना, पढ़ाई, खेल और सोने का समय एक ढर्रे पर देना चाहिए। इससे बच्चे का दिमाग जानता है कि कब क्या करना है, और वो कम विरोध करता है। उदाहरण के लिए, अगर हर शाम 7 बजे पढ़ाई की आदत बन गई हो, तो थोड़े दिन में बच्चा खुद ही तैयार हो जाता है।
पॉजिटिव रिवॉर्ड सिस्टम भी एक शानदार तरीका है। हर बार जब बच्चा बिना आनाकानी काम करता है, तो उसे छोटा सा इनाम या तारीफ़ देना — जैसे “बहुत अच्छे! आज तुमने बिना कहे अपना बैग पैक किया” — उससे वह व्यवहार दोहराने की संभावना बढ़ती है। ये इनाम हमेशा खिलौना या चॉकलेट नहीं होना चाहिए, एक स्टिकर, एक्स्ट्रा खेलने का समय, या एक गले लगाना भी काफी है।