उत्तर प्रदेशमहराजगंजयात्रा

महराजगंज जनपद के नौतनवा तहसील में ‘बनरसिया कला’ एक अद्भुत पौराणिक स्थल

भारत एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर से भरपूर देश है। इसके विभिन्न कोनों में बिखेरी गई अनगिनत प्राचीनताओं के साक्ष्य हमें विशेष रूप से उन जगहों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। एक ऐसा अद्भुत स्थल है ‘बनरसिया कला’, जिसे पूर्व में ‘देवदह’ के नाम से जाना जाता था। यह स्थल महराजगंज जनपद में स्थित है और भगवान बुद्ध से जुड़े ऐतिहासिक और पवित्र प्राचीन स्थलों में से एक है।

बनरसिया कला की पहचान

देवदह, जिसे आजकल ‘बनरसिया कला’ के नाम से जाना जाता है, भगवान बुद्ध के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। इस स्थल का महत्व अब तक अंतरराष्ट्रीय धरोहर के रूप में पहचाना नहीं गया है, लेकिन आने वाले समय में इसका विकास होने पर यह भी महत्वपूर्ण पहचान प्राप्त कर सकता है।

बनरसिया कला का स्थान

बनरसिया कला महराजगंज जनपद के नौतनवा तहसील में स्थित है। फरेंदा-सोनौली राजमार्ग के माध्यम से कोल्हुई के आगे जाकर ‘एकसड़वा’ से पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। पश्चिम में वर्षावन क्षेत्र में स्थित ‘चंकीघाट’ के मुख्यालय के निकट स्थित होने के कारण, यहां का पहुंचना सुविधाजनक है।

स्थल की विशेषताएँ

बनरसिया कला क्षेत्र में लगभग 35 हेक्टेयर क्षेत्र पर कई टीले और तालाब हैं। यहां की सुंदर प्राकृतिक छटा और आवासीय जीवन की प्रतिमा बनाती है। इसके साथ ही, यहां एक प्राचीन शिवलिंग और भगवान बुद्ध की एक चतुर्भुजाकार मूर्ति भी है।

बौद्ध साहित्य में देवदह का महत्व

प्राचीन बौद्ध साहित्य और विभिन्न चीनी यात्रियों फाहियान व ह्वेनसांग (युवान चुआंग) के वृतांत से पता चलता है कि देवदह क्षेत्र भगवान बुद्ध के जीवन यात्रा के संदर्भों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बौद्धकाल में यहां भगवान बुद्ध की माता महामाया, मौसी महाप्रजापति गौतमी और पत्नी यशोधरा की जन्मभूमि थी। इसके आधार पर यहां की पूरी भूमि को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित करने का निर्णय लिया था।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

बनरसिया कला क्षेत्र किस जनपद में स्थित है?

बनरसिया कला क्षेत्र महराजगंज जनपद के नौतनवा तहसील में स्थित है।

इस स्थल की पहचान किस नाम से थी और इसे किस नाम से जाना जाता है?

पूर्व में इस स्थल की पहचान ‘देवदह’ के नाम से थी, लेकिन आजकल इसे ‘बनरसिया कला’ के नाम से जाना जाता है।

बनरसिया कला क्षेत्र में कौनकौन सी विशेषताएँ हैं?

बनरसिया कला क्षेत्र में अनेक टीले, तालाब, प्राकृतिक छटा, एक प्राचीन शिवलिंग, और भगवान बुद्ध की एक चतुर्भुजाकार मूर्ति है।

क्या बौद्ध साहित्य में बनरसिया कला का उल्लेख है?

हां, प्राचीन बौद्ध साहित्य और यात्री फाहियान व ह्वेनसांग की रिपोर्ट्स में दिलचस्प रूप से बनरसिया कला के स्थल का वर्णन किया गया है।

बनरसिया कला क्षेत्र की विकास की संभावना क्यों है?

बनरसिया कला क्षेत्र का विकास होने पर इसकी महत्वपूर्णता और भी बढ़ सकती है, और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकती है।

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