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जलवायु चिंताएं: जी20 देशों ने 2022 में जीवाश्म ईंधन के लिए 14 सौ अरब अमेरिकी डॉलर आवंटित किए

नई दिल्ली। जी20 देशों ने यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन की बढ़ती कीमतों के प्रभाव को कम करने और ऊर्जा भंडार को मजबूत करने के उद्देश्य से 2022 में जीवाश्म ईंधन के लिए अपने कोष से 14 सौ अरब अमेरिकी डॉलर आवंटित किए। एक नए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई। विन्निपेग (कनाडा) के स्वतंत्र थिंक टैंक ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (आईआईएसडी) और साझेदारों का यह अध्ययन ऐसे वक्त सामने आया है जब जी-20 नेता नयी दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले शिखर सम्मेलन की तैयारी में जुटे हैं।

वर्तमान में जी-20 अध्यक्ष भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के लिए समर्थन बढ़ाते हुए 2014 से 2022 के बीच जीवाश्म ईंधन रियायत में 76 प्रतिशत की कटौती की। अध्ययन में कहा गया है कि यह भारत को इस मुद्दे पर नेतृत्व करने के लिए मजबूत स्थिति में रखता है। अध्ययन के अनुसार,14 सौ अरब अमेरिकी डॉलर की अप्रत्याशित राशि में जीवाश्म ईंधन रियायत (एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर), राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम निवेश (322 अरब अमेरिकी डॉलर) और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों द्वारा उधार दिया गया धन (50 अरब अमेरिकी डॉलर) शामिल हैं। अध्ययन में कहा गया है कि यह कुल राशि 2019 में कोविड-19 महामारी और ऊर्जा संकट से पहले की स्थिति की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।

आईआईएसडी के एक वरिष्ठ सहयोगी और अध्ययन के मुख्य लेखक तारा लान ने कहा, ये आंकड़े इस बात का स्मरण दिलाते हैं कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते विनाशकारी प्रभावों के बावजूद जी-20 सरकारें जीवाश्म ईंधन में भारी मात्रा में सार्वजनिक धन खर्च कर रही हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जी-20 शिखर सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन रियायत के मुद्दे पर विचार विमर्श जरूरी है, खासकर जब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बदतर होते जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जी-20 के पास हमारी जीवाश्म-आधारित ऊर्जा प्रणालियों को बदलने की शक्ति और जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि जी-20 समूह के लिए ‘दिल्ली लीडर्स समिट’ के एजेंडे में जीवाश्म ईंधन रियायत को शामिल करना और कोयला, तेल और गैस के लिए सभी सार्वजनिक वित्तीय प्रवाह को खत्म करने के लिए सार्थक कार्रवाई करना महत्वपूर्ण है।

जीवाश्म ईंधन के लिए वित्तीय सहायता अत्यधिक गर्मी की स्थिति, जंगल की आग और भारी बारिश जैसे मानव निर्मित जलवायु संकट और इसके कठोर प्रभावों को और बढ़ा सकते हैं। अध्ययन में इस बात को रेखांकित किया गया है कि जीवाश्म ईंधन की कीमतों को कम करने के लिए रियायत देना एक समस्या है क्योंकि यह इन हानिकारक ऊर्जा स्रोतों के अधिक उपयोग को प्रोत्साहित करती है। अध्ययन में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी से छुटकारा पाने के लिए एक बेहतर योजना का भी सुझाव दिया गया है : विकसित देशों को इसे 2025 तक बंद कर देना चाहिए और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इसे 2030 तक समाप्त करना चाहिए।

रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर जी-20 समूह जीवाश्म ईंधन रियायत पर खर्च किए गए खरबों डॉलर में से कुछ राशि को स्थानांतरित करता है, तो इससे बड़ा अंतर आ सकता है। इससे पवन और सौर ऊर्जा (प्रति वर्ष 450 अरब अमेरिकी डॉलर) के अंतर को पाटने, भूख से निपटने (33 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष), सभी को स्वच्छ बिजली और खाना पकाने के विकल्प देने (36 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष) आदि में विकासशील देशों को मदद मिल सकती है।

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