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Madhya Pradesh: महाशिवरात्रि पर 11.71 लाख दीपों से जगमगाई महाकाल की नगरी, बना अनोखा रिकॉर्ड

मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाशिवरात्रि पर्व पर शहरवासियों ने अपने घर-आंगन में दीप जलाकर शिव दीपावली मनाई. पूरे विश्व को उज्जैन आने का न्यौता दिया और अंधकार मिटाने का संदेश भी. मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के किनारे सूरज ढलते ही एक साथ 11 लाख 71 हजार 78 मिट्टी के दीपक (दीया) जलाकर गिनीज रिकॉर्ड बनाया. गिनिज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड की टीम ने इसे दीपों का सबसे बड़ा प्रदर्शन (लार्जेस्ट डिस्प्ले आफ आयल लैम्प) करार दिया और विश्व रिकॉर्ड बनने का प्रमाण पत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रदान किया. इसके बाद आतिशबाजी कर शिप्रा आरती की गई.

‘भोले से शिक्षा लें, दूसरों की सेवा के लिए त्याग करें’

वहीं, इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भगवान भोले शंकर से हमें बहुत कुछ सीखना चाहिए. भगवान शंकर ने जिस तरह से विष पीया, दुनिया को बचाने के लिये संघर्ष किया और ऐसे ही हमें भी दूसरों की सेवा के लिए त्यागर करना चाहिए. जिनके पास जरूरत से ज्यादा धन, संपदा है, वे जरूरतमंदों को दें.

उज्जैन के नाम ये भी रिकॉर्ड दर्ज

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सबसे बड़ी चश्मे की आकृति और स्वच्छता की शपथ 5153 विद्यार्थियों द्वारा मानव श्रृंखला के जरिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चश्मे की आकृति बनाने और सर्वाधिक विद्यार्थियों द्वारा स्वच्छता की शपथ लिखित और मौखिक रूप से लिए जाने का विश्व रिकार्ड उज्जैन ने 23 दिसंबर 2016 को बनाया था. इसी साल सर्वाधिक लोगों द्वारा हेरिटेज वाक किए जाने, सर्वाधिक लोगों द्वारा साइकिलिंग किए जाने, पांच हजार से ज्यादा सफाई मित्रों द्वारा पांच मिनट में साढ़े तीन किलोमीटर लंबी सड़क की सफाई किए जाने, 1 से 5 मई के बीच सबसे बड़े ग्रुप के साथ लंबी यात्रा (पंचकोशी) करने का विश्व रिकार्ड भी उज्जैन के नाम हो चुका है.

यहां भी जलाए गए दीप

शिप्रा तट के अलावा महाकाल मंदिर में 1 लाख 51 हजार दीपक, मंगल नाथ मंदिर में 11000 दीपक, काल भैरव मंदिर एवं घाट पर 10,000 दीपक, गढ़कालिका मंदिर में 1,100 दीपक , सिद्धवट मंदिर एवं घाट पर 6000 दीपक, हरसिद्धि मंदिर में 5000 दीपक, टावर चौक पर 1 लाख दीपक और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भी 2 लाख दीपक जलाए गए.

दीपोत्सव के बाद दीयो को किया जाएगा रिसाइकिल

दीपोत्सव के बाद दीयों को रिसाइकिल किया जाएगा. दीये की मिट्टी से भगवान की प्रतिमा बनाकर शहर में स्थायी रूप से स्थापित की जाएगी. बचे तेल का उपयोग गौशाला आदि में खाद्य पदार्थों के लिए किया जाएगा.

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