हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से सटी अंबाला लोकसभा सीट ऐसी है, जहां पिछले दो चुनाव से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर के चलते भाजपा को चुनावी रण में जीत हासिल होती आ रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ जल शक्ति मंत्रालय और सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय में राज्य मंत्री के तौर पर काम कर चुके रतनलाल कटारिया यहां से लगातार दो बार सांसद बने।
करीब आठ माह पहले उनका देहावसान हो गया। तब उपचुनाव कराने की बारी आई, लेकिन भाजपा ने अंबाला सुरक्षित लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराने की बजाय सीधे आम चुनाव में जाने का फैसला किया।
रतनलाल कटारिया बहुत ही सरल स्वभाव के जमीन से जुड़े ऐसे नेता था, जिन्होंने हरियाणा भाजपा के प्रभारी रहते नरेन्द्र मोदी के साथ संगठन का काम किया।
भाजपा ने उनकी पत्नी बंतो कटारिया को इस बार पार्टी चुनाव मैदान में उतारा है। बंतो कटारिया ऐसी महिला हैं, जिन्हें संगठन का काम बहुत अच्छे से आता है।
काफी हद तक रतनलाल कटारिया का चुनाव प्रबंधन बंतो कटारिया ही देखती थी। अब स्वयं के लिए फील्ड में मोदी के नाम पर वोट मांग रही हैं।
कांग्रेस ने मुलाना के विधायक वरुण चौधरी को अपनी पार्टी का चेहरा बनाया है, जो हरियाणा कांग्रेस के कई साल तक अध्यक्ष रह चुके एवं पूर्व शिक्षा मंत्री चौधरी फूलचंद मुलाना के बेटे हैं।
फूलचंद मुलाना हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबियों में शामिल हैं। इस वजह से हुड्डा का विशेष आशीर्वाद वरुण मुलाना पर रहता है।
विधानसभा में भी वरुण मुलाना राज्य स्तरीय मुद्दों पर अच्छे सवाल उठाते हैं। पिछले दिनों वरुण मुलाना ने एक राजनीतिक शगूफा छोड़ा। पूर्व गृह राज्य मंत्री अनिल विज के अंबाला छावनी आवास पर चले गए।
जिद करने लगे कि अनिल विज उन्हें आशीर्वाद दें। अनिल विज अपनी पार्टी के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं। वरुण मुलाना को घर बैठाया, चाय पिलाई, मगर जीत का आशीर्वाद बिल्कुल नहीं दिया।
विज के घर पहुंचकर वरुण जो राजनीतिक हवा बनाना चाहते थे, वह उसमें कामयाब नहीं हो सके। लेकिन अंबाला सुरक्षित सीट पर भाजपा व कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का है।
अंबाला से पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा दो बार सांसद रह चुकी हैं। इस बार वह सिरसा से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस हाईकमान को सैलजा ने अंबाला या सिरसा में से किसी एक सीट पर चुनाव लड़ने का विकल्प दिया था।
सैलजा ने सिरसा चुना, लेकिन अंबाला में अपने खेमे की विधायक रेणु बाला को टिकट दिलाना चाहती थी, मगर हुड्डा गुट ने ऐसा नहीं होने दिया और अपनी पसंद के वरुण मुलाना को चुनावी रण में उतार दिया।
सिरसा में हुड्डा गुट का समर्थन हासिल करने के लिए सैलजा अंबाला में वरुण का विरोध तो नहीं कर रही हैं, मगर समर्थन भी ज्यादा नहीं कर पा रही हैं, जिसका भाजपा को लाभ मिल रहा है।
वरुण मुलाना विधायक होने के नाते स्वयं के प्रभाव और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक औरे की वजह से भाजपा की बंतो कटारिया के सामने फाइट में बने हुए हैं।
पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्हें रागनियां गाने का बहुत ज्यादा शौक था। जनसभाओं में लोग कटारिया से रागनी सुनाने को कहते और वह मंच पर ही आरंभ हो जाते थे।
लोगों के बीच जाकर उनकी पत्नी बंतो कटारिया अपने पति रतनलाल कटारिया को याद करते हुए भावुक हो जाती हैं। लोगों को भरोसा दिलाती हैं कि रतनलाल कटारिया के जो अधूरे काम कर रहे थे, उन्हें वह पूरा करेंगी।
नरेन्द्र मोदी और रतनलाल कटारिया की चूंकि पुरानी मित्रता है, इसलिए मोदी ने न केवल बंतो कटारिया को अंबाला लोकसभा सीट से अपनी पार्टी का चेहरा बनाया, बल्कि उनके समर्थन में अंबाला में तीन लोकसभा क्षेत्रों अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल की विजय संकल्प रैली भी की।
मोदी की इस रैली के बाद बंतो कटारिया का चुनाव काफी उठ चुका है। अंबाला सुरक्षित लोकसभा सीट चूंकि दलित बाहुल्य है तो यहां दलित वोट जिसके साथ होगा, उसकी जीत तय है।
जननायक जनता पार्टी ने डा. किरण पुनिया और इनेलो ने गुरप्रीत सिंह लहरी को चुनाव लड़वाकर अंबाला के रण में शामिल होने की सिर्फ औपचारिकता भर निभाई है।
भाजपा को यहां केंद्र व राज्य की डबल इंजन की सरकार की योजनाओं के लाभ और कांग्रेस को हुड्डा के नाम का सहारा है।
दो-दो बार एक दूसरे को हरा चुके सैलजा और कटारिया
अंबाला लोकसभा सीट पर अभी तक 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से नौ बार कांग्रेस और पांच बार भाजपा ने अपनी जीत का परचम लहराया है। यहां कांग्रेस व भाजपा में ही मुकाबला होताआया है।
इस सीट पर शुरुआत से ही कांग्रेस का दबदबा बना हुआ था, लेकिन साल 2014 में हुए आम चुनाव से इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी अपना राज कर रही है।
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में रतन लाल कटारिया को 7 लाख 46 हजार 508 वोट हासिल हुए थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार कुमारी सैलजा को तीन लाख से ज्यादा मतों से हराया था।
2004 में लोकसभा चुनाव में रतनलाल कटारिया को अंबाला सीट से कांग्रेस की कुमारी सैलजा ने हराया था, जबकि 2009 में भी सैलजा यहां से सांसद बनी थी।
2014 में मोदी लहर में कुमारी सैलजा को मात देते हुए रतनलाल कटारिया दोबारा सांसद बने। फिर 2019 में लोकसभा चुनाव में तीसरी बार सांसद बने लेकिन पूरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इस बार भाजपा यहां जीत की हैट-ट्रिक लगाने की कोशिश में है।
रविदासिया और वाल्मीकि समुदाय में विभाजित दलित वोट बैंक
अंबाला में दलित समुदाय रविदासिया और वाल्मीकि में विभाजित है। यहां से आज तक वाल्मीकि समाज के किसी नेता ने जीत हासिल नहीं की है।
2014 में कांग्रेस ने वाल्मीकि समाज के राजकुमार वाल्मीकि को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन नतीजा उनके हक में नहीं रहा। रविदासिया समाज के रतनलाल कटारिया ने उन्हें 3.40 लाख वोटों के अंतर से हराया था।
यहां अनुसूजाति के वोट 27.2 प्रतिशत हैं, जबकि ओबीसी मतों की संख्या 28.27 प्रतिशत है। सवर्ण मत 44.71 प्रतिशत हैं, जबकि जाट 6.6 और ब्राह्मण सात प्रतिशत वोट हैं।
पंजाबी साढ़े 9 प्रतिशत, वैश्य 6 प्रतिशत, रामदासिया 16 प्रतिशथ और वाल्मीकि 6 प्रतिशत हैं, जो कि किसी भी चुनाव की दिशा बदल सकते हैं।