
वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई ने एक बार फिर धार्मिक स्थलों की संपत्ति और उसके प्रशासन पर बहस को गर्मा दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत के समक्ष तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि मस्जिदें मंदिरों से आर्थिक दृष्टिकोण से बिल्कुल भिन्न होती हैं। उन्होंने बताया कि जहां मंदिरों में श्रद्धालु बड़ी मात्रा में चढ़ावा चढ़ाते हैं, वहीं मस्जिदों में ऐसा कोई प्रचलन नहीं है। यह अंतर वक्फ संपत्तियों के रख-रखाव और उपयोग के तरीके को भी प्रभावित करता है।
सिब्बल ने कहा कि वक्फ संपत्तियां मुसलमानों की धार्मिक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए होती हैं, जिनका संचालन वक्फ बोर्ड करता है। इन संपत्तियों से मिलने वाली आमदनी का उपयोग मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों और जरूरतमंदों की मदद में किया जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि इस व्यवस्था को केवल मंदिरों के मॉडल के आधार पर परखना उचित नहीं होगा।
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सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार और याचिकाकर्ताओं दोनों से स्पष्ट उत्तर मांगे कि क्या वक्फ अधिनियम 1995 संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप है या नहीं। अदालत इस बात पर विचार कर रही है कि क्या वक्फ बोर्ड को दी गई शक्तियां धार्मिक स्वतंत्रता या समानता के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
इस मामले में उठे सवालों का असर न केवल मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर पड़ेगा, बल्कि यह मामला देश की धर्मनिरपेक्ष संरचना और विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के अधिकारों की सीमाओं को भी परिभाषित कर सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या निर्णय देती है।