सैयद फसीउल्लाह निज़ामी “रुमी”
30 दिन रोज़े रखने के बाद अल्लाह तआला ईद जैसी ख़ुशी हमें तोहफ़े में देता है और हम विभिन्न तरह के मीठे पकवानों का स्वाद लेते हैं व अपने वालिद (पिता) व भाइयों दोस्तों के साथ ईदगाह में नमाज़ अदा करने जाते हैं। ईद का दिन बहुत ख़ुशी का दिन होता है और यह त्यौहार रमज़ान का चांद डूबने व ईद का चांद नज़र आने के बाद अगले दिन मनाया जाता है। ईद मोहब्बतों व भाईचारे का त्योहार है जिसमें लोग एक दूसरे के घर जाकर गले मिलकर मीठी सेवइयां व दहीबड़े, छोले, चाट वग़ैरह खाकर मोहब्बत का पैग़ाम देते हैं। छोटे भाइयों व बहनों तथा पड़ोसी रिश्तेदारों के बच्चों को ईदी बांटी जाती हैं।
मुस्लिम धर्म मे ईद सबसे बड़ा त्योहार होता है जिसकी तैयारी हम रमज़ान शुरू होते ही शुरू कर देते और चाँद रात से इसको अंतिम रूप देने में जुट जाते हैं। घर मे कोई पर्दे साफ़ करता है तो कोई खिड़कियों, दरवाज़ों की सफ़ाई में में भीड़ जाता है इसी दौरान घर में अम्मा की आवाज़ गूंजती है कि सोफ़े के सारे कवर ठीक ढंग से साफ़ होने चाहिएं व एक भी झाले दीवारों आदि पर न बचें। इस तरह से घर का हर एक फ़र्द किसी न किसी काम मे लग जाता है। बच्चों की तो इस दिन अलग मौज़ होती है कोई अपने कपड़े नाप रहा है तो कोई अपनी टोपी व चप्पल सभी को बारी बारी से दिखाने में मशगूल होता है। पहली ईद उल फ़ित्र की बात करें तो ह. मोहम्मद स.अ. ने 624 में जंग ए बदर की जीत के बाद मनाई थी। उन्होंने जंग बद्र की जीत के बाद सभी का मुंह मीठा कराया था इसके बाद इस दिन को मीठी ईद या ईद उल फ़ित्र के रूप में मनाया जाता है। एक तरह से कहा जाये कि ईद जैसा बेहतरीन तोहफ़ा तीस दिन कुरान की तिलावत व उपवास के बदले ख़ुदा की तरफ़ से मेहनताना है तो ग़लत न होगा।
अगर हम ईद के ख़ास मक़सद की बात करें तो गरीबों को फ़ितरा देना ज़रूरी अर्थात वाज़िब है जिससे कि गरीबों की ईद भी मीठी सेवइयों की तरह मीठी हो सके। वे नए कपड़े, चप्पल पहनकर ईद मनाएं व लज़ीज़ पकवान बनाकर खुशी में सराबोर हों। जिनके पास 52.5 तोला चांदी व 7.5 तोला सोना हो उन्हें फ़ितरा वाली रक़म ईद की नमाज़ से पहले अदा करनी ज़रूरी है। ईद की सुबह हम ईदगाह जाने की तैयारियों में लग जाते हैं और दूसरी तरफ़ घर की औरतें विभिन्न प्रकार के लज़ीज़ व्यंजन बनाने में व्यस्त हो जाती हैं। नहा धोकर व इत्र लगाकर नये कपड़े पहने हम छोटे बच्चों का हाथ थामे ईदगाह की तरफ चल पड़ते हैं जहां पर हम नमाज़ अदा करते हैं और फिर दूसरे रास्ते से वापस घर आते हैं। नमाज़ के बाद ईदगाह पर लगे मेले पर एक तरह से बच्चों का कब्ज़ा हो जाता है कोई पूड़ी छोले तो कोई चाट पकौड़े खाता नज़र आता है तो कोई गर्मी के मौसम में शर्बतों पर टूटा पड़ा है।
शर्बत भी कई प्रकार के कहीं ऑरेंज फ़्लेवर वाले तो कहीं निम्बू व रसना वाले और रूह अफ़ज़ा वाले शर्बत पर तो भीड़ लग जाती है। केले, सेब, पपीता, नारंगी व अंगूर भी खूब बिकते हैं। तरबूज़ वाला अलग आवाज़ देता है कि एक दम लाल वाला मीठा वाला है आइए तरबूज़ खाइये और प्यास भगाइये। मीठी बनिया, चीनी का बना असली पत्तियों के साथ नकली आम सभी बच्चों को खूब भाता है। बांसुरी और पिपिहरी कि आवाज़ से पूरा ईदगाह प्रांगण गूंज उठता है तो बाइस्कोप दिखाने वाले भी इक्का दुक्का दिख जाते हैं जो कहते नजर आते हैं कि घर बैठे पूरा संसार देखो, पैसा फेंको तमाशा देखो। इस तरह से ईद इस्लाम धर्म का एक बहुत ही प्यारा व मोहब्बतें बांटने वाला त्योहार है जिस लोग एक दूसरे को मीठी सेवँई खिलाकर मोहब्बत का पैग़ाम मुल्क़ व सारी दुनिया को देते हैं।