पंजाब

डॉ. बलबीर सिंह ने पंजाब की जेलों में मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप कार्यक्रम किया शुरू

पंजाब की जेलों में सुधार लाने और उन्हें सुधार केंद्र बनाने के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के संकल्प के साथ, पंजाब के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. बलबीर सिंह ने राज्य की जेलों में मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप कार्यक्रम शुरू किया।

यहां सेक्टर 35 स्थित नगर भवन में आयोजित एक राज्य स्तरीय समारोह के दौरान कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए डॉ. बलबीर सिंह ने कहा कि यह पहल पंजाब की चार जेलों यानी लुधियाना, गुरदासपुर, पटियाला और अमृतसर में कैदियों को स्क्रीनिंग, परामर्श और रेफरल सेवाएं प्रदान करेगी।

स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि यह प्रोजेक्ट जल्द ही पंजाब की सभी जेलों में लागू किया जाएगा। इन केंद्रों में विश्व स्वास्थ्य साझेदारों के सहयोग से परामर्शदाताओं की भर्ती की गई है, जो बंदियों और कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के उद्देश्य से परामर्श देंगे।

डॉ. बलबीर सिंह ने कहा कि यह पहल मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 को लागू करने की हमारी प्रतिबद्धता को और मजबूत करेगी, जिससे हर राज्य सरकार के लिए जेलों के चिकित्सा विंग में मानसिक स्वास्थ्य सुविधा रखना अनिवार्य हो जाएगा।

कैदियों के सामने आने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को रेखांकित करते हुए डॉ. बलबीर सिंह ने कहा कि आत्महत्या कैदियों में मानसिक बीमारी का एक बड़ा परिणाम है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कैदियों के बीच अप्राकृतिक मौतों का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है। समिति ने कहा कि जेलों में हुई 817 अप्राकृतिक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं, जो काफी चिंताजनक है।

डॉ. बलबीर सिंह ने कहा कि कैदियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे न केवल उनकी भलाई को प्रभावित करते हैं, बल्कि इसका प्रभाव यह है कि हर दिन जेलों से मोबाइल फोन, नशीली दवाओं की बरामदगी होती है।

अब इस पहल से जेलों से अच्छी खबरें आनी शुरू हो जाएंगी और कैदियों को ट्रेनिंग देकर और उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाएगा।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि जेलों में बंद 25000 कैदियों में से 14000 कैदी एनडीपीएस एक्ट के तहत बंद हैं। ऐसे सभी कैदी तस्कर नहीं हैं, बल्कि नशे की लत के कारण जेलों में बंद हैं।

इन नशेड़ियों को जेल भेजने के बजाय यदि उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर उन्हें नशा मुक्ति केंद्रों में भेजा जाए तो जेल का बोझ काफी कम हो सकता है। जेलों में बंद सुधरे हुए कैदी भी समाज के लिए रोल मॉडल बन जाएंगे। नशा छोड़ो और आत्मनिर्भर बनो।

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