
उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले में करीब 5000 बुनकर ऐसे हैं जो सरकार द्वारा चलाई जा रही बारकोडिंग योजना से अभी तक नहीं जुड़े हैं। इसके कारण वे सरकारी सब्सिडी, तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों जैसे लाभों से वंचित रह जा रहे हैं। इससे सालाना लाखों रुपये का नुकसान इन पारंपरिक कारीगरों को हो रहा है।
बारकोडिंग के माध्यम से बुनकरों को उनकी पहचान मिलती है और वह बुनकर पहचान पत्र (Weaver ID) के तहत सरकार से मिलने वाली वित्तीय व तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकते हैं। इसके बिना वे सरकारी खरीद, निर्यात योजनाओं और आधुनिक मशीनों पर मिलने वाली सब्सिडी का फायदा नहीं उठा पाते।
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स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि कई बार बुनकरों में जागरूकता की कमी और प्रक्रिया की तकनीकी जटिलताएं इसका प्रमुख कारण हैं। साथ ही, कुछ बिचौलियों द्वारा गलत जानकारी फैलाकर बुनकरों को भ्रमित किया जा रहा है।
इस मुद्दे को लेकर बुनकर यूनियन और स्थानीय सामाजिक संगठनों ने सरकार से अपील की है कि बारकोडिंग प्रक्रिया को और सरल बनाया जाए तथा गांव-गांव जाकर कैंप लगाए जाएं ताकि ज्यादा से ज्यादा बुनकर इसका लाभ ले सकें।
मऊ के बुनकर न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं, बल्कि भारत के पारंपरिक हथकरघा उद्योग की पहचान भी हैं। यदि उन्हें सही समय पर तकनीकी और आर्थिक मदद मिले, तो वे न सिर्फ आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि वैश्विक बाजार में भी भारतीय हथकरघा को पहचान दिला सकते हैं।