बस्ती

बस्ती में विद्युत सप्लाई लगभग ठप, डीएम के कड़े तेवर, बाधा उत्पन्न कर रहे विद्युत कर्मियों पर ऊपर एस्मा के तहत होगी कार्यवाही

एस्मा कानून से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु चर्चा में क्यों ?

बस्ती। जनपद में विद्युत कर्मियों की हड़ताल से पूरे जनपद में लाइट की कटौती को देखते हुए डीएम ने बाधा उत्पन्न करने वाले विद्युत कर्मचारियों के विरुद्ध एस्मा की कार्रवाई की बात निरक्षण के दौरान की है।
डीएम श्रीमती प्रियंका निरंजन ने गुरुवार की रात अमहट विद्युत उप केंद्र, मालवीय नगर विद्युत उप केंद्र तथा पुरानी बस्ती विद्युत उप केंद्र में विद्युत कटौती को देखते हुए निरीक्षण कर स्थिति का जायजा लिया गया। डीएम वहां तैनात अधिकारियों कर्मचारियों से विद्युत आपूर्ति की स्थिति की जानकारी लिया।
डीएम ने निरीक्षण के दौरान आश्वासन दिया कि कर्मचारी अपना ड्यूटी सही ढंग से करेगा तो उसका प्रशासन पूर्ण रूप से सहयोग करेगा। वही यह भी कहा की किसी भी संविदा कर्मी को निष्ठा पूर्वक ड्यूटी करने पर हटाया नहीं जाएगा। इसके साथ ही बाधा उत्पन्न करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध एस्मा की कार्यवाही की जाएगी। इस दौरान उनके साथ डिप्टी कलेक्टर जीके झा भी उपस्थित रहे।

एस्मा कानून से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
चर्चा में क्यों ?

हाल ही में यूपी सरकार ने हड़ताल पर बैठे विद्युत कर्मचारियों पर एस्मा यानी एसेंशियल सर्विसेज मैनेजमेंट एक्ट (essential services management act) जिसे हिंदी में ‘अत्यावश्यक सेवा अनुरक्षण कानून’ कहा जाता है, लगा दिया है। जब कभी भी कर्मचारी हड़ताल पर बैठते हैं तो एस्मा भी चर्चा में आ जाता है।

क्या है एस्मा?

आवश्‍यक सेवा अनुरक्षण कानून (एस्‍मा) हड़ताल को रोकने के लिये लगाया जाता है। विदित हो कि एस्‍मा लागू करने से पहले इससे प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को किसी समाचार पत्र या अन्‍य दूसरे माध्‍यम से सूचित किया जाता है।
एस्‍मा अधिकतम छह महीने के लिये लगाया जा सकता है और इसके लागू होने के बाद अगर कोई कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध‍ और दण्‍डनीय है।
सरकारें क्यों लगाती हैं एस्मा?

सरकारें एस्मा लगाने का फैसला इसलिये करती हैं क्योंकि हड़ताल की वजह से लोगों के लिये आवश्यक सेवाओं पर बुरा असर पड़ने की आशंका होती है। जबकि आवश्‍यक सेवा अनुरक्षण कानून यानी एस्मा वह कानून है, जो अनिवार्य सेवाओं को बनाए रखने के लिये लागू किया जाता है।
इसके तहत जिस सेवा पर एस्मा लगाया जाता है, उससे संबंधित कर्मचारी हड़ताल नहीं कर सकते, अन्यथा हड़तालियों को छह माह तक की कैद या ढाई सौ रु. दंड अथवा दोनों हो सकते हैं।
निष्कर्ष

एस्मा के रूप में सरकार के पास एक ऐसा हथियार है जिससे वह जब चाहे कर्मचारियों के आंदोलन को कुचल सकती है, विशेषकर हड़तालों पर प्रतिबंध लगा सकती है और बिना वारंट के कर्मचारी नेताओं को गिरफ्तार कर सकती है। एस्मा लागू होने के बाद यदि कर्मचारी हड़ताल में शामिल होता है तो यह अवैध एवं दंडनीय माना जाता है।
वैसे तो एस्मा एक केंद्रीय कानून है जिसे 1968 में लागू किया गया था, लेकिन राज्य सरकारें इस कानून को लागू करने के लिये स्वतंत्र हैं। उल्लेखनीय है कि थोड़े बहुत परिवर्तन कर कई राज्य सरकारों ने स्वयं का एस्मा कानून भी बना लिया है और अत्यावश्यक सेवाओं की सूची भी अपने अनुसार बनाई है।

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