बस्ती

कप्तानगंज विधायक कविंद्र चौधरी ने उठाया आयुर्वेदिक यूनानी फार्मासिस्टो के भर्ती की मांग, आयुर्वेद की पढ़ाई कर बेरोजगार भटक रहे युवा

मुख्यमंत्री से सेवा नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी प्रदान कराने व वर्तमान में रिक्त पदों पर नियुक्ति की मांग

बस्ती। जनपद में कप्तानगंज के विधायक कविंद्र चौधरी ने मुख्यमंत्री से आयुर्वेदिक यूनानी फार्मासिस्टो की सेवा नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी देने व वर्तमान में रिक्त पदों पर नियुक्ति की मांग के साथ साथ इनके जीविकोपार्जन के लिए मेडिकल स्टोर खोले जाने का मुद्दा उठाया है।

विधायक कविंद्र चौधरी ने अपने पत्र में लिखा है कि आयुर्वेद यूनानी फार्मासिस्टों की नियुक्ति अंतिम बार सन 1990 में हुई थी। तब से लेकर अब तक कोई नियुक्ति नहीं की गई है जबकि वर्तमान समय में लगभग 689 आयुर्वेद फार्मासिस्ट के पद रिक्त हैं। विधायक ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि आज के समय में आयुर्वेद यूनानी विभाग में फार्मासिस्टों के सृजित पदों के सापेक्ष 40% से अधिक पद रिक्त है । आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति बोर्ड उत्तर प्रदेश द्वारा प्रदेश में सन 2010 से अब तक आयुर्वेद में 4215 तथा यूनानी में 1079 फार्मासिस्टों को प्रशिक्षित किया गया। जबकि इसके पूर्व में भी भारी संख्या में लोगों को प्रशिक्षित किया गया है और अभी भी प्रशिक्षण निरंतर प्रदान किया जा रहा है। विधायक ने अपने पत्र में यह भी बताया कि आयुर्वेदिक यूनानी फार्मासिस्टों को मेडिकल स्टोर खोलने के लिए लाइसेंस का भी कोई प्रावधान नहीं है। जिससे यह लोग स्वरोजगार करके जीवन यापन भी नहीं कर पा रहे हैं बल्कि बहुत से आयुर्वेद यूनानी अस्पतालों में फार्मासिस्ट न होने के कारण चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी द्वारा औषधि वितरण का कार्य किया जा रहा है जो कि चिकित्सा की दृष्टि से बहुत ही घातक है और तमाम उक्त डिग्री लेकर युवा बेरोजगार बैठे है।
आयुर्वेद फार्मासिस्ट का कोर्स करने वाले युवा सरकार से नौकरी की मांग कर रहे हैं। मगर अब तक सरकार द्वारा इन पदों को भरे जाने के लिए कोई भी भर्ती प्रक्रिया नहीं शुरू की गई है।
गौरतलब है कि प्रदेश में सरकारी आयुर्वेद के अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है। कई स्वास्थ्य केंद्रों में तो फार्मासिस्ट के साथ ही डॉक्टरों के पद भी रिक्त हैं, जिसके चलते बाबू इन केंद्रों का संचालन कर रहे हैं।
सवाल यह भी उठता है कि जब सरकार को भर्ती ही नहीं करनी है तो फिर लगातार लोगों को प्रशिक्षण क्यों दिया जा रहा है । ऐसा करके क्या सरकारें युवाओं को ठगने का काम नहीं कर रही हैं । सवाल यह भी है कि जब नियुक्ति ही नहीं करनी है तो फिर प्रशिक्षण को सरकार बंद क्यों नहीं कर देती। कम से कम युवाओं का पैसा और समय तो बर्बाद नहीं होगा ।

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