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पॉक्सो एक्ट के मिसयूज पर हाईकोर्ट का फैसला, पीड़िता की उम्र तय करने के लिए मेडिकल जांच जरूरी

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों में पीड़िता की आयु निर्धारण में आ रही विसंगतियों और एक्ट के दुरुपयोग के मद्देनजर व्यापक दिशा निर्देश जारी किए हैं. कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज हर मामले में संबंधित पुलिस अधिकारी या विवेचक यह सुनिश्चित करेंगे कि पीड़िता की आयु का निर्धारण के लिए मेडिकल रिपोर्ट अवश्य तैयार की जाए. इसमें सिर्फ तभी छूट दी जा सकती है, जब ऐसा करना पीड़ित के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालने वाला हो.

कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट कानून में निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप तैयार की जाए तथा यह नवीनतम वैज्ञानिक मानकों और मेडिकल प्रोटोकॉल के तहत होनी चाहिए. मेडिकल रिपोर्ट को बिना किसी विलंब के न्यायालय में दाखिल किया जाए. कोर्ट ने महानिदेशक स्वास्थ्य को निर्देश दिया है कि वह यह सुनिश्चित करें कि मेडिकल परीक्षण करने वाले डॉक्टर अच्छी तरह से प्रशिक्षित हों और आयु निर्धारण करते समय वह वैज्ञानिक मानकों और मेडिकल प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन करें.

कोर्ट ने कहा कि इस दिशा में सतत वैज्ञानिक शोध भी नवीनतम वैज्ञानिक विकास के मद्देनजर किया जाना चाहिए. गाजियाबाद के अमन की जमानत अर्जी मंजूर करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने दिया. जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगातार देखने में आ रहा है कि बहुत सी मेडिकल रिपोर्ट में अभियोजन द्वारा बताई गई आयु से विरोधाभास है. अभियोजन पीड़ित को नाबालिग बताता है, वहीं उसकी मेडिकल रिपोर्ट में वह बालिग होती है. कई मामलों में याची की ओर से यह कहा जाता है कि मेडिकल जांच जानबूझकर नहीं कराया गया, क्योंकि इससे पीड़ित बालिग साबित हो सकती थी.

ऐसा अभियुक्त को लंबे समय तक जेल में रखने के इरादा से किया जाता है. वहीं कई मामलों में अनिवार्य कानून होने के बावजूद मेडिकल जांच को विवेचना पर छोड़ दिया जाता है. याची अमन के मामले में कहा गया कि उसके विरुद्ध गाजियाबाद के शालीमार गार्डन थाने में दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया. इसमें वह 5 दिसंबर 2023 से जेल में बंद है. याची की ओर से कहा गया कि प्राथमिकी में पीड़िता को गलत तरीके से 16 वर्ष का नाबालिग बताया गया है, ताकि याची को पॉक्सो एक्ट में फंसाया जा सके. जबकि वास्तविकता यह है कि पीड़िता अपनी मर्जी से याची के साथ गई. उसने पुलिस और मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयान में कहीं भी दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाया है. कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अमन की जमानत मंजूर कर ली.

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