
- फाल्गुन मास की अष्टमी से पूर्णिमा तक समय को कहा जाता है होलाष्टक
लखनऊ। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी यानि आज सोमवार से होलाष्टक शुरू हो गए। मान्यता है कि होलाष्टक की अवधि में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। हिन्दी पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा को होलिका दहन तक की अवधि तक के समय को होलाष्टक कहा जाता है। कुछ लोग होलिका दहन से चै़त्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक के समय को भी होलाष्टक मानते हैं।
लखनपुरी में छोटी काशी कहे जाने वाले पुराने शहर में स्थापित प्राचीन श्रीकोनश्वर महादेव मंदिर के आचार्य पं. दिनेश कुमार ने बताया कि होली से पहले हिन्दी महीने के फाल्गुन मास की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा को होलिका दहन वाले दिन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। इस अवधि में शादी, ब्याह, गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य रूक जाते है। इनको नहीं करना चाहिए। वहीं पूजा-पाठ, जप-तप व पितरों के निमित्त कोई अनुष्ठान आदि कर सकते हैं।
उन्होंने होलाष्टक बहुत खराब माना जाता है। हालांकि उन्होंने होलिका दहन से लेकर चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक के समय को भी होलाष्टक माना गया हे। उ.प्र. संस्कृत संस्थान के पूर्व कर्मकाण्ड प्रशिक्षक पं. अनिल कुमार पाण्डेय ने भी बताया कि सोमवार से होलाष्टक माना जाएगा। यह पूर्णिमा तक चलेगा। इन आठ दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकते है।