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योगी सरकार 2.0 में भी डिप्टी सीएम बने केशव, ब्रजेश पाठक ने ली दिनेश शर्मा की जगह

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार 2.0 का गठन हो गया है. राजधानी लखनऊ के अटल स्टेडियम में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वहीं इस बार भी यूपी में दो डिप्टी सीएम बनाए गए हैं. लेकिन इसमें बड़ी बात यह रही कि केशव प्रसाद मौर्या () हार के बाद भी एक बार फिर उपमुख्यमंत्री बना दिए गए. वहीं दूसरे डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा की जगह ब्रजेश पाठक को बनाया गया है. योगी सरकार के इस मंत्रिमंडल में जिस तरीके से जातीय समीकरण बनाया गया है, उसमें 2024 के चुनाव की साफ झलक देखी जा सकती है.

ओबीसी के बड़े चेहरे केशव

दरअसल 2017 के चुनाव में केशव मौर्य यूपी के प्रदेश अध्यक्ष थे. भाजपा ने उन्हें ओबीसी समुदाय के बड़े चेहरे के रुप में प्रोजेक्ट किया. 2017 की प्रचंड जीत में उनकी बड़ी भूमिका रही. ओबीसी का एक बड़ा जनाधार भी उनके साथ है. जिसके बाद पिछले सरकार में उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया था. वहीं इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा से जब स्वामी प्रसाद मौर्य अपने साथियों के साथ चले गए तो ओबीसी के बड़े चेहरे केशव प्रसाद मौर्य ही रहे. हालांकि वह सिराथू की अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं रहे.

सिराथू हारे तो उठे सवाल

पल्लवी पटेल के खिलाफ सिराथू विधानसभा चुनाव हारने के बाद केशव मौर्य के उपर सवाल भी उठे. चर्चा यह होने लगी कि इस बार डिप्टी सीएम तो छोड़िए कोई भी पद मिलना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों की नजर अब 2024 के चुनाव पर लगी हुई है. जिसका फायदा केशव को जातिगत रुप से मिला और उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी फिर मिल गई. 2024 के लिए केशव प्रसाद मौर्य का चेहरा बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. वहीं भाजपा किसी भी रुप में पिछड़ों को नाराज नहीं करना चाहती है.

दिनेश शर्मा की कुर्सी क्यों चली गई?

योगी सरकार 2.0 में 52 मंत्रियों  ने शपथ ली, जिसमें दो उपमुख्यमंत्री और 16 कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं. इसमें केशव प्रसाद मौर्य के अलावा ब्रजेश पाठक भी डिप्टी सीएम हैं. इस बार दिनेश शर्मा को हटा दिया गया है और ब्राह्मण चेहरे के रुप में ब्रजेश पाठक को जगह मिली है. हालांकि माना यहा जा रहा था कि दिनेश की जगह केशव की कुर्सी जाएगी. माना जा रहा है कि डिप्टी सीएम रहने के बाद भी दिनेश शर्मा की पैठ ब्राह्मणों में उतनी नहीं दिखी. योगी पर ब्राह्मण विरोधी होने की बात को भी वो सही से जनता के बीच जाकर खारिज नहीं कर पाए, वहीं दूसरी ओर ब्रजेश पाठक तेज तर्रार नेता माने जाते रहे हैं.

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