कुशीनगर

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर आयोजित हुए कार्यक्रम

पडरौना,कुशीनगर
जिले के पडरौना नगर स्थित हनुमान इंटर कॉलेज में 28 फरवरी को जिला विद्यालय निरीक्षक रविन्द्र सिंह के निर्देश पर सीवी रमन की जयंती को रमन प्रभाव के उपलक्ष्य में घोषित राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत विद्यालय के प्रबन्धक मनोज शर्मा और प्रधानाचार्य शैलेन्द्र दत्त शुक्ल द्वारा माँ सरस्वती और हनुमान जी के साथ सी वी रमन के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया।
इस दौरान संगोष्ठी में उपस्थित छात्र छात्राओं को डॉ सीवी रमन के बारे में प्रकाश डालते हुए विद्यालय के विज्ञान शिक्षक राजेश यादव ने बताया कि चन्द्रशेखर वेंकटरामन का जन्म 7 नवम्बर 1888 ई. में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्‍ली नामक स्थान में हुआ था, इनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस. पी. जी. कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे तथा माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। सन् 1892 ई. में आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापतनम के श्रीमती ए. वी.एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापक होकर चले गए, उस समय इनकी अवस्था चार वर्ष की थी। सीवी रमन की प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई, वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगति ने आपको विशेष रूप से प्रभावित किया।
विद्यालय के भौतिक विज्ञान के शिक्षक उमेश प्रसाद ने भी डॉ रमन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत जानकारी प्रदान की, इस दौरान उन्होंने बताया कि उन दिनों रमन जी के समान प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी वैज्ञानिक बनने की सुविधा नहीं थी, अत: वे भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठ गए और प्रतियोगिता परीक्षा में प्रथम भी आए और जून, 1907 में ये असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनकर कलकत्ते चले गए। उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि इनके जीवन में स्थिरता आ गई है लेकिन एक दिन कार्यालय से लौट रहे थे कि एक साइन बोर्ड देखा, जिस पर लिखा था ‘वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद (इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस)’, यह देखने के बाद डॉ सीवी रमन ट्राम से उतरे और परिषद् कार्यालय में पहुँच गए, वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा पा ली। इसके बाद इनका तबादला पहले रंगून को और फिर नागपुर को हुआ। उसके बाद डॉ सीवी रमन ने घर में ही प्रयोगशाला बना ली थी और समय मिलने पर उसी में प्रयोग करते रहते थे। सन् 1911 ई. में इनका तबादला फिर कलकत्ता हो गया, तो यहाँ पर परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने का फिर अवसर मिल गया, इनका यह क्रम सन् 1917 ई. तक निर्विघ्न रूप से चलता रहा। इस अवधि के बीच आपके अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र था “ध्वनि के कम्पन और कार्यों का सिद्धान्त”।
डॉ सीवी रमन को वाद्यों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि सन् 1927 ई. में जर्मनी में प्रकाशित बीस खण्डों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खण्ड के लिए वाद्ययंत्रों की भौतिकी का लेख आपसे तैयार करवाया गया, सम्पूर्ण भौतिकी कोश में डॉ सीवी रमन ही ऐसे लेखक हैं जो जर्मन नहीं है।
इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक कैलाश त्रिपाठी ने डॉ सीवी रमन के विश्वविद्यालयी जीवन के विषय मे बताया कि कलकत्ता विश्वविद्यालय में सन् 1917 ई में भौतिकी के प्राध्यापक का पद बना तो वहाँ के कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने उसे स्वीकार करने के लिए आपको आमंत्रित किया तब सीवी रमन ने उनका निमंत्रण स्वीकार करके उच्च सरकारी पद से त्याग-पत्र दे दिया।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में आपने कुछ वर्षों में वस्तुओं में प्रकाश के चलने का अध्ययन किया, इनमें किरणों का पूर्ण समूह बिल्कुल सीधा नहीं चलता है, उसका कुछ भाग अपनी राह बदलकर बिखर जाता है।
सन् 1921 ई. में सीवी रमन विश्वविद्यालयों की कांग्रेस में प्रतिनिधि बनकर आक्सफोर्ड गए। वहां जब अन्य प्रतिनिधि लंदन में दर्शनीय वस्तुओं को देख अपना मनोरंजन कर रहे थे, तो वहाँ डॉ रमन सेंट पाल के गिरजाघर में उसके फुसफुसाते गलियारों का रहस्य समझने में लगे हुए थे। जब डॉ रमन जलयान से स्वदेश लौट रहे थे, तो इन्होंने भूमध्य सागर के जल में उसका अनोखा नीला व दूधियापन देखा। इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुँच कर आपने पार्थिव वस्तुओं में प्रकाश के बिखरने का नियमित अध्ययन शुरु कर दिया। इसके माध्यम से लगभग सात वर्ष उपरांत, आप अपनी उस खोज पर पहुँचें, जो ‘रामन प्रभाव’ के नाम से विख्यात है। डॉ सीवी रमन का ध्यान 1927 ई. में इस बात पर गया कि जब एक्स किरणें प्रकीर्ण होती हैं, तो उनकी तरंग लम्बाईयाँ बदल जाती हैं। पारद आर्क के प्रकाश का स्पेक्ट्रम स्पेक्ट्रोस्कोप में निर्मित किया। इन दोनों के मध्य विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ रखे तथा पारद आर्क के प्रकाश को उनमें से गुजार कर स्पेक्ट्रम बनाए, इन्होंने देखा कि हर एक स्पेक्ट्रम में अन्तर पड़ता है, हरएक पदार्थ अपनी-अपनी प्रकार का अन्तर डालता है, तब श्रेष्ठ स्पेक्ट्रम चित्र तैयार किए गए, उन्हें मापकर तथा गणित करके उनकी सैद्धान्तिक व्याख्या की गई। प्रमाणित किया गया कि यह अन्तर पारद प्रकाश की तरगं लम्बाइयों में परिवर्तित होने के कारण पड़ता है तब रामन् प्रभाव का उद्घाटन हो गया, सीवी रमन ने इस खोज की घोषणा 29 फ़रवरी सन् 1928 ई. को की थी।
कार्यक्रम का संचालन विद्यालय के हिंदी प्रवक्ता विवेक शर्मा ने किया और उन्होंने बताया कि इस वर्ष की थीम है “वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान”, इस अवसर पर विद्यालय के छात्र छात्राओं ने अपने विचार रखे और अपने मॉडलों का प्रदर्शन भी किया जिसमें प्रमुख रूप से विद्यालय की छात्रा आकृति दीक्षित, मुस्कान गुप्त, तृषा वर्मा, अंशु गुप्ता और विष्णु गुप्त ने अपने विचार रखे तो वहीं आर्या त्रिपाठी द्वारा बनाया गया मॉडल कम लागत में पानी शुद्धिकरण मशीन एवं शुभम गुप्त का मॉडल सराहनीय रहा।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से विद्यालय के शिक्षक राकेश त्रिपाठी, अमित राव, मनोज पांडेय, अश्वनी शर्मा आदि शिक्षकगण तथा छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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