उत्तर प्रदेशलखनऊ

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र स्वत्व बोध के रचनाकार : डाॅ. सदानन्द

लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा शुक्रवार को ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जयन्ती‘ समारोह का आयोजन हिन्दी भवन लखनऊ के यशपाल सभागार में किया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त ने कहा कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र स्वत्व बोध के रचनाकार हैं। उन्होंने कहा कि भारतेन्दु जी ब्रज भाषा के कवि हैं। भारतेन्दु उन महान विभूतियों में से एक हैं जो किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने के लिए धरती पर आते हैं। उनके समय में देश में संक्रमण काल था। वे नव जागरण के पुरोधा कहे जाते हैं। ‘कवि वचनसुधा‘ ध्येयता भारत अपना स्वप्न पूरा करे।

वे दूरदर्शी व भविष्य के स्वप्न द्रष्टा थे। उन्होंने भारत में नव जागरण का मंत्र फूँका। वे दृढ़ प्रतिज्ञ, स्वावलम्बी रचनाकार थे। उनके साहित्य में श्रृंगार तत्व उदात्त श्रृंगार है। उनका कहना था परमेश्वर को पाने का मार्ग प्रेम है। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीय चेतना व राष्ट्रप्रेम से भरी हैं। सदानन्द गुप्त ने कहा कि भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। स्वदेशी चेतना के तत्व उनके निबन्धों में मिलते हैं। वे आर्थिक स्वावलम्बन के पक्षधर थे। वे भारतीयों को कभी पुचकार कर कभी फटकार अपनी कहते थे। भारतेन्दु के निबंधों में सामाजिक उद्देश्य निहित है। व्यंग्य की परम्परा हिन्दी में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से प्रारम्भ होता है।

भारतेन्दु लोकहित चिन्तक थे: डॉ सुरेन्द्र दुबे

गोरखपुर से आए डॉ0 सुरेन्द्र दुबे ने कहा कि भारतेन्दु की जीवन यात्रा बहुत कम रही। वे मात्र 35 वर्ष जीवित रहे लेकिन इस अल्प आयु में वे साहित्य में अमर हो गये। भारतीय संस्कृति में अमर तत्व विद्यमान है। भारतीय संस्कृति निरंतर प्रवाहित होती रहती है। जीवन में आयु कितनी हो यह महत्वपूर्ण नहीं बल्कि अल्प आयु में कितने सत्कर्म किये गये है उसकी महत्ता है। भारतेन्दु लोकहित चिन्तक थे। वे नाटकों में पुरानी शैली छोड़कर नई शैली के प्रयोग के पक्षधर थे। नाटक देशकाल के अनुरूप होना चाहिए। नाटकों में आधुनिक विचारों का समावेश होना चाहिए। उनके नाटक राष्ट्रीय स्वाधीनता से ओत-प्रोत हैं। वे अंग्रेजी शासन व्यवस्था के विरोधी थे।

भारतेन्दु ने कभी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की: प्रो. ओमप्रकाश सिंह

काशी से आए प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म उस समय हुआ जब दयानन्द सरस्वती के विचारों व आन्दोलनों का युग चल रहा था। महापुरुषों का जीवन संघर्षमय रहा है। भारत सरकार की नई शिक्षानीति के समय में आज हम भारतेन्दु की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रहें है। उनके साहित्य में पत्रकारिता से विषय वस्तु का समावेश हुआ। उन्होंने ‘कवि वचन सुधा‘ नामक समाचार पत्र का प्रकाशित किया। उन्होंने अपने समाचार पत्रों में नवोदित कवियों, साहित्यकारों को स्थान दिया। राजा सितारे हिन्द भारतेन्दु के गुरु थे। भारतेन्दु ने कभी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की जिससे उनको काफी आर्थिक संकटों से भी गुजरना पड़ा था। कार्यक्रम में वाणी वंदना सर्वजीत सिंह मारवा ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उप्र हिन्दी संस्थान ने किया।

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