उत्तर प्रदेशलखनऊ

”शौक को केवल शौक के रूप में रखा जाए तो ही बेहतर”

  • लखनऊ के गोमतीनगर, संगीत नाटक अकादमी के संत गाड्गे जी महाराज प्रेक्षागृह चल रहे नाटक के दूसरे दिन नाटक ‘नवाब झूमर द्वितीय की हुई प्रस्तुति

लखनऊ। शौक को केवल शौक के रूप में रखा जाए तो वह सबके लिए बेहतर है। यह संदेश दिया नाटक ‘नवाब झूमर द्वितीय ने। नाटक का मंचन संगीत नाटक अकादमी के सन्त गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में चल रहे अभिनव नाट्य समारोह में गुरुवार को दूसरी संध्या हुआ। वरिष्ठ नाट्य लेखक मोहम्मद असलम लिखित एवं अनुपम बिसारिया निर्देशित इस नाटक ने दर्शकों को हंसाकर लोटपोट किया।

उमंग फाउंडेशन की प्रस्तुति ‘नवाब झूमर द्वितीय‘ ने लखनऊ के नवाबों की याद दिलाते हुए संदेश दिया कि शौक को केवल शौक के रूप में रखा जाए तो वह सबके लिए बेहतर है। हास्य परिहास्य की चाशनी से परिपूर्ण नाटक की कहानी सन् 1857 के इर्द-गिर्द लखनऊ के गोमती नदी के एक छोर पर बनी कोठी मदहोश के नवाब बालम, उनकी बेगम तमन्ना और उनकी बेटी मायसा के रिश्ते की तलाश की बानगी दर्शाती है। मायसा का मुंह लगा रज्जब मायशा के रिश्ते के लिए दुग्गी पिटवा देता है। इस ऐलान को सुनकर कई दावेदार आ जाते हैं।

इस दरमियां मायशा का रिश्ता नवाब झूमर द्वितीय के साथ कबूल हो जाता है। इस शादी के बाद, नवाब बालम को एक दिन पता चलता है कि नवाब झूमर द्वितीय ने लखनऊ में हर दुकानदार से उधार ले रखा है। झूमर द्वितीय मायसा से कहता है कि उधार लेना हराम नहीं है, वह फैजाबाद के मुकदमे से जीत जायेगा तो वह नवाब झूमर प्रथम की औलाद साबित हो जायेगा। मायसा कहती है कि जुआ खेलना नवाबों का शौक है, उधार से क्या मतलब…।

मोहम्मद असलम खान ने इस नाटक को जिस खुबसूरती से लिखा है उसी खुबसूरती से एक एक किरदार को अपनी लेखनी से गढ़ा भी है। सशक्त कथानक और उत्कृष्ट संवाद अदायगी से परिपूर्ण नाटक नवाब झूमर द्वितीय में शीलू मलिक, अविनाश श्रीवास्तव, ललित सिंह पोखरिया, अनुभव मिश्रा, श्रेया गुप्ता, आदित्य कुमार वर्मा, परितोष मिश्रा, रितेश शुक्ला, आशुतोष जायसवाल, देवाशीष मिश्रा और राजेश मिश्रा ने अपने दमदार अभिनय से रंग प्रेमी दर्शकों को देर तक न केवल अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा, अपितु उनका भरपूर मनोरंजन भी किया। नाट्य के नेपथ्य में जामिया शकील, शिवरतन (मंच निर्माण), मनीष सैनी (प्रकाश परिकल्पना), आशीष, शुभम (संगीत), अंशिका क्रिएशन (मुख्य सज्जा) का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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