उत्तर प्रदेशलखनऊ

अवध में दिखी काशी की संगीत परम्परा

  • पंडित किशन महाराज के जन्मशताब्दी वर्ष में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में हुआ ‘लय किसलय‘ कार्यक्रम

लखनऊ। अवसर विख्यात तबला वादक पंडित किशन महाराज को उनके जन्मशताब्दी वर्ष में श्रद्धांजलि अर्पित करने का था लेकिन यह काशी की संगीत परंपरा की बानगी का मंच भी बन गया। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी और अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान और उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में अकादमी की वाल्मीकि रंगशाला में आयोजित समारोह ‘लय किसलय‘ में जहां तबला के बनारस घराने के विख्यात तबला वादक पंडित किशन महाराज के पुत्र एवं प्रसिद्ध तबला वादक पंडित पूरण महाराज एवं पौत्री अवन्तिका मिश्रा ने जहां घराने के तबला वादन की प्रभावी प्रस्तुति की वहीं काशी के ही विख्यात ठुमरी गायक पंडित महादेव प्रसाद मिश्र की पुत्री मीना मिश्र ने उपशास्त्रीय गायन के माध्यम से पिता से विरासत में मिली रचनाओं का प्रदर्शन किया। संगतकार भी बनारस घराने से जुड़े थे।

बनारस घराने का तबला वादन

पूरण महाराज और बेटी अवंतिका मिश्रा ने तबले पर बनारस घराने के अनुरूप तीन ताल में युगल तबला वादन प्रस्तुत किया। पंडित किशन महाराज की परंपरा के अनुरूप‘ ता ‘की तिहाई से शुरू करके उठान के उसके बाद छोटे आमद और फिर चलनचारी की प्रस्तुति की। पूरण महाराज ने बताया कि चलनचारी नाम भी पिताजी पंडित किशन महाराज का ही दिया हुआ है । तत्पश्चात प्रसिद्ध बांट, उसमें चारो लय-बराबर, सवाई , आड़ी और झूलना का प्रदर्शन करके उसी में रेला, उसी के अंतर्गत गत एवं फर्द की प्रस्तुति की। पूरण महाराज ने बताया कि फर्द किसी और घराने में नहीं बजता है। यह बनारस घराने की देन है। पिता-पुत्री ने इसी क्रम में बनारस घराने के विख्यात तबला वादकों पंडित भैरव सहाय, पंडित बलदेव सहाय, पंडित कंठे महाराज, पंडित सामता प्रसाद, पंडित शारदा सहाय की रचनाएं भी प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम की समाप्ति अवंतिका मिश्रा ने अपने परदादा पंडित कठे महाराज जी की रचना स्तुति परन- ओम धा निर्मल धा.. बजाकर किया।

हमें ना भावे यारी रे सांवरिया..

ठुमरी सम्राट पंडित महादेव प्रसाद मिश्र की पुत्री और शिष्या मीना मिश्रा ने पिताजी से प्राप्त प्राचीन बंदिशों के साथ अपने गायन का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। मीना मिश्रा गायन के साथ बंदिश रचना एवं काव्य लेखन से भी जुड़ी हैं तथा उप शास्त्रीय गायकी की शिक्षा भी देती है। उन्होंने सर्वप्रथम राग खमाज में पूरब अंग की ठुमरी ‘अब ना बजाओ श्याम…‘ प्रस्तुत किया। इसके पश्चात राग खमाज में ही बोल बांट की ठुमरी ‘हटो जाओ रे ना बोलो कान्हा‘ सुनाया।

इसी क्रम में राग मिश्र पीलू में एक पुरानी बंदिश ‘हमें ना भावे यारी रे.. सांवरियाश् सुनाते हुए कहा कि यह बंदिश पंडित किशन महाराज जी को बहुत पसंद थी। उन्होंने बनारस का एक बहुत ही पुराना दादरा ‘सांवरिया प्यारा रे मोरी गुईया‘ तथा भजन ‘सांवरिया मन भायो.. भी सुनाया ।संगत में तबले पर देव नारायण मिश्र और हारमोनियम पर पंकज मिश्र थे।

किशन महाराज पर होगा ‘छायानट‘ का विशेषांक

समारोह में अकादमी के सचिव तरुण राज ने घोषणा की कि पंडित किशन महाराज के जन्मशताब्दी वर्ष में अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका ‘छायानट‘ के उन पर विशेषांक का प्रकाशन किया जाएगा। इस मौके पर पत्रिका के संपादक आलोक पराड़कर ने पंडित किशन महाराज से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने संगतकार को मुख्य कलाकार के बराबर का सम्मान दिलाया। उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष अभय कुमार जैन ने भी पंडित किशन महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित की। धन्यवाद ज्ञापन अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के निदेशक राकेश सिंह ने किया। संचालन सुष्मित त्रिपाठी ने किया।

चित्रकला प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

पंडित किशन महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। विख्यात तबला वादक होने के साथ ही वे चित्रकार एवं मूर्तिकार भी थे। समारोह में अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान एवं उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान के तत्वावधान में चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में छात्र छात्राओं ने भाग लिया और पंडित किशन महाराज पर चित्र बनाए।

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