उत्तर प्रदेशकानपुर

मुस्लिम करते हैं होलिका दहन का इंतजाम, Kanpur में बरसों से चली आ रही परंपरा, यहां जानें सब कुछ

कानपुर। नफरत के बाजार में भाईचारे और सौहार्द की बड़ी मिसाल है, बेगमपुरवा की होली। हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भाव की गंगा-जमुनी तहजीब यहां होलिका दहन में देखने को मिलती है। इलाके में वर्तमान में बमुश्किल एक दर्जन हिंदू परिवार रहते हैं। ऐसे में घनी मुस्लिम आबादी के बीच होली का त्योहार मनाना उनके लिए समस्या न बने, इसे देखते हुए मुस्लिम भाई न सिर्फ होलिका दहन की व्यवस्था करते हैं, बल्कि होली जलने के समय हिंदू परिवारों के साथ त्योहार की उमंग में शामिल भी होते हैं।

बाबूपुरवा इलाके में बेगमपुरवा स्थित सफेद कालोनी वर्ष 1992 में हुए दंगे के बाद हिंदू परिवारों के पलायन से अब मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र गिना जाता है। कालोनी में मुश्किल से 6 से 8 हिंदू परिवार ही बचे हैं। लेकिन इलाके के मुस्लिम परिवारों ने यहां शेष बचे हिंदू परिवारों को ऐसा अपनत्व प्रदान किया है कि अब वे कहीं और जाने के बारे में सोचते भी नहीं हैं। दंगों के 31 साल गुजर चुके हैं, लेकिन होली, दीपावली, ईद, बकरीद सभी त्योहार अमन चैन के साथ दोनों समुदाय साथ मिलकर मना रहे हैं। क्षेत्र में रहने वाले किशोर कुमार ने बताया कि वह परिवार के साथ यहां पर करीब 60 वर्ष पूर्व रहने आए थे।

दंगों के बाद काफी परिवार यहां से पलायन कर गए, लेकिन उनका परिवार यहां से नहीं गया। इसी दौरान होली का त्योहार आया। जिस पर उस समय के कुछ बुजुर्ग मुस्लिमों ने होलिका दहन की व्यवस्था के साथ रंग, गुलाल, मिठाइयों का इंतजाम किया था। दंगे के बाद की उस पहली होली को याद करते हुए किशोर ने बताया कि उनको ऐसा एहसास ही नहीं हुआ कि किसी अन्य धर्म या समुदाय के लोगों ने उनके लिए त्योहार का आयोजन किया है। मुस्लिम भाइयों ने पूरे विधि विधान के साथ  होलिका दहन का अयोजन कराया था। क्षेत्र के निवासी इंद्रपाल, टिंकू ने बताया कि वह दो पीढ़ियों से बेगमपुरवा इलाके में रह रहे हैं। यहां सभी लोग त्योहार एक साथ ही मनाते हैं। इलाके में कुछ ही हिंदू परिवार रहते हैं।

यदि मुस्लिम भाई सहयोग न करें तो वह लोग कैसे हर्षोल्लास के साथ त्योहार मना पाएंगे। इंद्रपाल ने बताया कि बेगमपुरवा की सफेद कालोनी में होली पर जैसा सौहार्द पूर्ण वातावरण देखने को मिलता है, ऐसा माहौल उन्होंने कहीं और नहीं देखा है। इलाके में रहने वाले आकिल सानू ने बताया कि हम लोग 31 सालों से होलिका दहन के साथ अगले दिन हर्षोल्लास के साथ होली खेलते आ रहे हैं।

आकिल के अनुसार  पूर्वजों के समय से ऐसा माहौल देखा है, जिसे वो भी उसी परंपरा के साथ निभा रहे है। उन्होंने बताया कि  होलिका दहन के लिए एक कमेटी बनाई है, जिसमें अयान खान, जावेद, अतहर, रफीक, लईक, मेराज समेत अन्य मुस्लिम युवा सदस्य हैं। अयान खान ने बताया कि उन्होंने अपने पूर्वजों को होलिका दहन के लिए चंदा एकत्र करते, लकड़ियां लाते व सजावट कराते देखा है। आज वो लोग तो नहीं रहे, लेकिन उनकी परंपरा बरकरार रखते हुए होली का त्योहार को हर्षोल्लास के साथ हिंदू भाइयों संग मना रहे हैं।

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