बाबा विश्वनाथ से खेली इत्र की होली, चौसट्टी देवी के दरबार में चढ़ा अबीर-गुलाल
- इत्र की होली खेलने बाबा दरबार तक पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते पहुंचे श्रद्धालु
वाराणसी। रंगों का त्योहार होली शुक्रवार को बाबा विश्वनाथ की नगरी में उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया गया। दिन में रंगों की होली खेलने के बाद लोग चौसट्टीघाट स्थित चौसट्टी देवी के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचे। परम्परानुसार अबीर गुलाल चढ़ाकर मातारानी से घर परिवार में सुख समृद्धि की कामना की गई। मंदिर में महिला श्रद्धालुओं की भीड़ दोपहर बाद उमड़ने लगी। महिलाओं ने मंदिर की परिक्रमा भी की।
उल्लेखनीय है कि होली पर्व पर काशी में चौसट्टी देवी के दर्शन पूजन का विधान हैं। मान्यता है कि राजा दिवोदास का मतिभ्रम करने के लिए स्वयं महादेव ने 64 योगीनियों को काशी भेजा था। काशी की समरसता, धार्मिकता के मोहपाश में योगिनी बंध गयी और काशी में ही बस गयी। अन्तत: शिवशंकर को ब्रह्मा जी के माध्यम से काशी मेें पुन: प्रवेश का अवसर मिला।
होली पर्व पर ही श्री काशी विश्वनाथ दरबार के अलावा बाबा कालभैरव, मां अन्नपूर्णा, महा मृत्युंजय मंदिर, मां शीतला, मां संकठा, मां पिताम्बरा, मां मंगला गौरी, मां दुर्गा, मां महालक्ष्मी, श्री बटुक भैरव, मां कामाख्या, श्री विश्वनाथ मंदिर (बीएचयू), बाबा कीनाराम दरबार, अघोर दरबार पड़ाव में भी भक्तों ने पूरे आस्था के साथ अबीर गुलाल अर्पित किया।
गंगा घाट से बाबा दरबार तक पंचाक्षरी मंत्र का जाप
होली पर शिवाराधना समिति के सदस्यों ने संस्थापक डॉ मृदुल मिश्र के साथ काशीपुरापति बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाई। सदस्यों ने गौना कराकर आये राज राजेश्वर काशीपुराधिपति के स्वर्णिम गर्भगृह में इत्र चढ़ा बाबा से इत्र की होली खेली। इस दौरान पूरा दरबार हर-हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष के साथ गूजता रहा।
इसके पहले समिति के सदस्य भोर में काशीपुरा, जगतगंज, पिपलानी कटरा, नाटी इमली और लक्सा से ढोलक, झाल और मंजीरे पर ऊं नम: शिवाय पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए अहिल्याबाई घाट पर जुटे। यहां से फिर बाबा के स्वर्ण शिखर वाले दरबार में पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए पहुंचे। दरबार में समिति के लोगों ने विभिन्न प्रकार के इत्रों के संग होली खेली। पूरा परिसर इत्र की खुशबू से महक उठा।
सदस्यों ने मंदिर के अर्चक, सेवादार और शिवभक्तों के संग भी होली खेली। डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि काशी में रंगभरी एकादशी पर अबीर गुलाल, दूसरे दिन मणिकर्णिकाघाट पर चिताभस्म की होली के बाद शिवभक्त बाबा के संग होली के दिन अलसुबह इत्र वाली होली खेलते हैं। पिछले 20 वर्षों से यह परम्परा चल रही है।