
- सैकड़ों मील दूर बैठे चिकित्सक दे रहे स्वास्थ्य सेवाएं
बहराइचl इंडो-नेपाल सीमा पर बसे भारत का आखिरी गांव बलई की 34 वर्षीय सोनी के शरीर में दाद रोग हो गया था। तीन वर्ष तक निजी चिकित्सकों व झाड़फूँक से राहत नहीं मिली तो वह गांव में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) सुचिता वर्मा से मिलीं। सीएचओ ने ई-संजीवनी ओपीडी के माध्यम से केजीएमयू लखनऊ के विशेषज्ञ से परामर्श दिलाया और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से ही दवा भी दी। एक माह इलाज के बाद सोनी स्वस्थ हो गई। वहीं पास के ही गांव पौड़ा मेड़किहा के बैजू यादव, 65 वर्ष को उच्च रक्तचाप की शिकायत थी। ई संजीवनी ओपीडी के जरिए इलाज चल रहा है। बैजू यादव कहते हैं कि मुझे इस सुविधा से इतना लाभ हुआ कि पड़ोस के लोगों को भी निःशुल्क सेवा लेने की सलाह दी। कई लोग स्वस्थ भी हो चुके हैं।
सोनी और बैजू तो सिर्फ उदाहरण हैं। ऐसे अनगिनत जनपदवासी हैं जो आजकल ई-संजीवनी टेलीमेडिसिन पोर्टल सेवा का लाभ ले रहे हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ सतीश कुमार सिंह ने बताया कि कोरोना काल में शुरू हुई यह सेवा दूर दराज के मरीजों, खास कर बुजुर्ग , महिलाएं व बच्चों के लिए लाभकारी साबित हो रही है। यही कारण है कि ई- संजीवनी ओपीडी के माध्यम से बीते चार माह में 39501 लोगों को विशेषज्ञ चिकित्सकों से सलाह मिल चुकी है।वहीं इस सेवा से सीएचसी, पीएचसी व जनपद स्तरीय अस्पतालों में काम का बोझ थोड़ा कम हुआ है, इससे उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और बेहतर होगी।
उन्होंने बताया कि जनपद में 312 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की स्थापना हुई है। इनमें 51 पीएचसी व 261 उपकेन्द्रों पर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर शुरू किए गए हैं। सभी सेंटर पर ई संजीवनी ओपीडी की सुविधा, टीबी एवं अन्य संक्रामक रोग , बीपी, शुगर, हृदय रोग व कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज व जांच की व्यवस्था की गयी है। जिलाधिकारी डॉ दिनेश चन्द्र का कहना है कि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारी की सही पहचान व बेहतर इलाज नहीं मिलने पर कई बुजुर्ग व महिलाएं बीमारी के साथ ही जीवन जीने के लिए मजबूर रहती हैं। ऐसे में ई-संजीवनी के माध्यम से स्वस्थ समाज की संकल्पना को साकार किया जा सकता है।