
सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी शनिवार को संपन्न हुआ। संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालयों के उच्च कोटि के प्रोफेसर उपाचार्य एवं शोध छात्रों ने सहभागिता की। अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन लुंबिनी बुद्धिस्ट यूनिवर्सिटी नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय बौद्ध केंद्र द्वारा आयोजित किये गए सेमिनार को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद द्वारा सहायता भी प्रदान की गई।
इस संगोष्ठी के विषय भारतीय ज्ञान परंपरा में राहुल सांकृत्यायन का योगदान पर विशेष चर्चा हुई तथा आगत अतिथियों में उद्घाटन सत्र में उपस्थित प्रोफेसर दिलीप कुमार महंता आचार्य दर्शन विभाग कोलकाता विश्वविद्यालय कोलकाता के पूर्व कुलपति एवं कल्याणी विश्वविद्यालय नदिया के पूर्व कुलपति रह चुके प्रोफेसर महंता मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। साथ ही विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर अंबिका दत्त शर्मा आचार्य दर्शन विभाग डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर उपस्थित रहे। इनके साथ ही विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मानिक रत्न शाक्य कार्यवाहक कुलपति लुंबिनी विश्वविद्यालय नेपाल उपस्थित रहे।
बीज वक्तव्य प्रोफेसर हरिशंकर प्रसाद पूर्व आचार्य दर्शन विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय नई दिल्ली के द्वारा दिया गया। इस संपूर्ण कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रोफ़ेसर हरि बहादुर श्रीवास्तव द्वारा किया गया। प्रथम दिवस दो तकनीकी सत्र चलाए गए जिनमें लगभग 12 शोध पत्रों का वाचन हुआ, दूसरे दिन दो तकनीकी सत्र चलाए गए जो लुंबिनी बुद्धिस्ट विश्वविद्यालय नेपाल में आयोजित हुआ जिसमे प्रथम सत्र में शोध पत्रों का वाचन हुआ और द्वितीय सत्र विचार-विमर्श के लिए रखा गया। इसके साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा माया देवी मंदिर का भ्रमण कराया गया और तीसरे दिन समापन समारोह से पहले एक तकनीकी सत्र चलाया गया जिसमें 11 शोध पत्रों का वाचन हुआ सभी तकनीकी सत्रों में अत्यधिक गंभीरतापूर्वक शोध पत्रों पर विचार विमर्श हुआ।
साथ ही साथ इस कार्यक्रम के समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित प्रोफेसर सदानंद गुप्त द्वारा राहुल सांकृत्यायन पर प्रकाश डाला गया एवं मुख्य अतिथि प्रोफेसर सच्चिदानंद मिश्र सदस्य सचिव भारतीय अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया गया। उन्होंने राहुल सांकृत्यायन का देश के शिक्षा प्रणाली पर विविध आयामों पर कुशल कार्य करने पर भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए कुछ ना कुछ अवश्य करना चाहिए।
उन्होंने 36 भाषा भाषाओं का ज्ञान होने के बावजूद हिंदी भाषा को अपनी लेखन की शैली बनाया तथा आम जनता को इस बात से जागरूक किया कि जब तक कोशिश नहीं की जाएगी हम अपनी ज्ञान प्रणाली को खोज नहीं पाएंगे। अध्यक्षीय उद्बोधन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरि बहादुर श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि वह इस बात से अत्यधिक प्रसन्न है कि देश के कई हिस्सों से विद्वानों ने सिद्धार्थ विश्वविद्यालय आकर हमें अनुग्रहित किया। बुद्ध की इस पावन धरती पर इस प्रकार के आयोजनों का होना हमारे लिए सौभाग्य की बात है साथ ही साथ उन्होंने आगत अतिथियों का विश्वविद्यालय में अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद भी ज्ञापित दिया।
समापन सत्र के प्रारंभ में प्रोफेसर हरीश कुमार शर्मा अध्यक्ष हिंदी विभाग एवं अधिष्ठाता कला संकाय सिद्धार्थ विश्वविद्यालय द्वारा स्वागत भाषण प्रस्तुत किया गया तदुपरांत डॉक्टर नीता यादव अध्यक्ष प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु द्वारा सेमिनार रिपोर्ट प्रस्तुत की गई तथा विशिष्ट अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर दीपक बाबू अध्यक्ष वाणिज्य संकाय एवं अधिष्ठाता वाणिज्य संकाय द्वारा प्रस्तुत किया गया। संपूर्ण कार्यक्रम विशेष कार्याधिकारी अंतरराष्ट्रीय बौद्ध केंद्र प्रोफेसर सुशील कुमार तिवारी द्वारा आयोजित किया गया साथ ही सह समन्वयक प्रोफेसर पूर्णेश सिंह तथा लुम्बिनी विश्वविद्यालय के गजेंद्र गुप्ता द्वारा उनका सहयोग किया गया।