नैनीताल हाईकोर्ट ने दिया निर्देश, राज्य के सांसदों और विधायकों पर दर्ज मामलों की जानकारी कोर्ट को दे राज्य सरकार
नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य के सांसदों और विधायकों पर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी को लेकर राज्य सरकार को आदेश दिया है. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार कोर्ट को इसकी जानकारी दे कि किन सांसदों और विधायकों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं. असल में हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है और इसके लिए 3 मार्च तक ब्योरा कोर्ट को देने को कहा है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि कितने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं और कितने अभी भी अदालतों में लंबित हैं. इसकी जानकारी कोर्ट को दी जाए. इस मामले में दायर याचिका में सचिव गृह, सचिव विधि एवं न्याय, सचिव वित्त, सचिव महिला एवं बाल कल्याण, डीजीपी को पक्षकार बनाया गया है. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि उसने गवाहों की सुरक्षा के लिए अभी तक क्या कदम उठाए हैं. इस मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 22 फरवरी तक इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने का आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा के लिए दिए थे निर्देश
असल में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उत्तराखंड सरकार को आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में सभी राज्यों को 2019 के अंत तक सभी अदालतों में गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए परिसर स्थापित करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिए थे. लेकिन राज्य सरकारों द्वारा इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है।. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कई गंभीर मामलों में गवाहों को राज्यों द्वारा प्रदान नहीं की गई है और वह सरकारी सुरक्षा के कारण गवाही देने से मुकर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिया था निर्देश
जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2021 में सभी राज्यों के हाई कोर्ट को निर्देश दिए थे कि जितने भी मामले सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित हैं, उन पर तेजी से सुनवाई होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें आईपीसी की धारा-321 का दुरुपयोग कर अपने राज्य के सांसदों और विधायकों के मामले वापस ले रही हैं और राज्य सरकारें हाई कोर्ट अनुमति के बगैर ऐसा नहीं कर सकती है. लिहाजा ऐसे मामलों को निपटाने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए.