
हाल ही में सामने आई एक अमेरिकी रिपोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रंप प्रशासन ईरान की परमाणु और सैन्य गतिविधियों को रोकने में पूरी तरह असफल रहा। ट्रंप ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे एक “राजनीतिक साजिश” करार दिया है। उन्होंने दावा किया कि यह रिपोर्ट उन्हें बदनाम करने के मकसद से तैयार की गई है, ताकि 2024 की राजनीति में उनकी छवि को नुकसान पहुंचे।
रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और अधिकतम दबाव की नीति का ईरान पर सीमित प्रभाव पड़ा। ईरान ने न सिर्फ अपनी परमाणु गतिविधियों को जारी रखा, बल्कि क्षेत्रीय ताकत के रूप में खुद को और अधिक सशक्त किया। कई खुफिया सूत्रों ने भी रिपोर्ट में इन तथ्यों की पुष्टि की है।
ट्रंप ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा कि यह रिपोर्ट पूर्व डेमोक्रेटिक अधिकारियों और उनके सहयोगियों द्वारा मिलकर बनाई गई है। उनका कहना है कि वे 2024 में उनके संभावित चुनावी अभियान से डरते हैं, इसलिए उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिपोर्ट ट्रंप के लिए बड़ा झटका हो सकती है, खासकर तब जब वह खुद को अमेरिका के सबसे कड़े राष्ट्रवादी नेताओं में से एक साबित करते आए हैं। ईरान के मसले पर उनकी विफलता उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा सकती है।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अमेरिका में राजनीतिक बहस तेज हो गई है। रिपब्लिकन पार्टी के कई नेताओं ने इसका बचाव किया है, वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी इसे ट्रंप की नीतियों की असलियत बताने का मौका मान रही है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते (JCPOA) से हटना एक रणनीतिक भूल साबित हुआ। इस कदम के बाद ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधियों को और तेजी से बढ़ाया और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण से खुद को काफी हद तक अलग कर लिया। इससे अमेरिका की वैश्विक साख पर भी सवाल उठे।
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप ने ईरान पर दबाव बनाने के लिए केवल आर्थिक प्रतिबंधों पर भरोसा किया, लेकिन कोई वैकल्पिक कूटनीतिक रणनीति नहीं बनाई। इसके चलते ईरान ने चीन और रूस जैसे देशों से नजदीकियां बढ़ाकर अपने विकल्पों को मजबूत कर लिया।