
आज की वैश्विक राजनीति में अमेरिका एक बार फिर अपनी दबंग कूटनीति के लिए चर्चा में है। आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक स्तर पर अमेरिका अपने हितों की पूर्ति के लिए सख्त और स्पष्ट नीतियाँ अपना रहा है। भारत सहित कई देशों की नजरें अब अमेरिका की हर रणनीतिक चाल पर टिकी हैं, क्योंकि इसका सीधा असर वैश्विक संतुलन और क्षेत्रीय समीकरणों पर पड़ता है। अमेरिका की यह नई कूटनीतिक शैली न सिर्फ गठबंधन बदल रही है बल्कि वैश्विक राजनीति की दिशा भी तय कर रही है।
बीते कुछ वर्षों में अमेरिका ने जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी नीतियों को आक्रामक रूप से लागू किया है, वह यह दर्शाता है कि अब वह अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध हो या चीन के साथ व्यापार युद्ध, अमेरिका की भूमिका निर्णायक रही है। उसकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति अब केवल नारा नहीं, बल्कि एक सख्त रणनीति बन चुकी है।
भारत, जो खुद एक उभरती वैश्विक शक्ति है, अमेरिका की इस कूटनीति को संतुलन के साथ देख रहा है। भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को गहरा किया है, लेकिन वह रूस और अन्य देशों से भी रिश्ते बनाए रखने की नीति पर अडिग है। ऐसे में भारत के लिए यह समय बेहद रणनीतिक है, क्योंकि उसे वैश्विक दबावों के बीच अपनी संप्रभुता और कूटनीतिक स्वतंत्रता को भी बनाए रखना है।
अमेरिका की नई कूटनीति ने विश्व राजनीति में दो स्पष्ट धड़े बना दिए हैं – एक जो उसके साथ है और दूसरा जो उसके खिलाफ खड़ा है। इस स्थिति में कई छोटे देश असमंजस की स्थिति में हैं। उन्हें यह तय करना कठिन हो रहा है कि वे अमेरिका के दबाव के आगे झुकें या अपनी स्वतंत्र नीति अपनाएं। इस कूटनीतिक खिंचतान में संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी अपनी निष्पक्षता को बचाने की कोशिश में हैं।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य और राजनीतिक सक्रियता तेज हो गई है। जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ गठबंधन को मजबूत करना, और चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करने के लिए भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाना – ये सब अमेरिका की बड़ी योजना का हिस्सा हैं। इसका उद्देश्य केवल प्रभाव बढ़ाना नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता पर नियंत्रण भी है।
अमेरिका की दबंग कूटनीति का यह दौर केवल उसकी वैश्विक स्थिति को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति को प्रभावित कर रहा है। भारत समेत कई राष्ट्र अब कूटनीतिक संतुलन की उस डोर पर चल रहे हैं जहाँ एक गलत कदम से बड़े बदलाव संभव हैं। आने वाले समय में यह देखना रोचक होगा कि अमेरिका की यह रणनीति स्थायी लाभ देगी या नई चुनौतियों को जन्म देगी।