
‘बीबी को फोन लगाओ…’ ये शब्द डोनाल्ड ट्रंप के थे, जब पश्चिम एशिया एक और बड़े युद्ध की ओर बढ़ रहा था। ईरान और इजरायल के बीच हालिया तनाव ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया था। लेकिन अचानक माहौल बदल गया। सीजफायर की घोषणा हुई और युद्ध की आशंका टल गई। आखिर ट्रंप की इस एक कॉल ने कैसे मोड़ दिया पूरा घटनाक्रम? क्या नेतन्याहू पर पड़ा दबाव? जानिए इस नाटकीय घटनाक्रम की पूरी कहानी।
बीते कुछ हफ्तों से ईरान और इजरायल के बीच तनाव अपने चरम पर था। गाजा, सीरिया और लेबनान की सीमाओं पर लगातार संघर्ष की खबरें आ रही थीं। ड्रोन हमले, मिसाइल हमले और जवाबी कार्रवाइयों ने पूरे मध्य पूर्व को एक बड़े युद्ध की आशंका में डाल दिया था। अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों ने चिंता जताई, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल रहा था।
ऐसे में अचानक डोनाल्ड ट्रंप का नाम सामने आया। ट्रंप, जो अब सत्ता में नहीं हैं, फिर भी उनके पश्चिम एशिया के नेताओं के साथ पुराने संबंधों ने एक बार फिर काम किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने सीधे इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से संपर्क किया और कहा – “बीबी को फोन लगाओ।” बीबी नेतन्याहू का निकनेम है, और यह संकेत था कि उन्हें अब पीछे हटना चाहिए।
माना जा रहा है कि ट्रंप की इस पहल के पीछे अमेरिका में यहूदी समुदाय और कुछ प्रमुख लॉबी समूहों का दबाव भी था। नेतन्याहू, जो पहले आक्रामक रुख अपनाए हुए थे, ट्रंप के हस्तक्षेप के बाद अचानक नरम पड़े और कुछ ही घंटों में इजरायली सुरक्षा कैबिनेट की आपात बैठक बुला ली गई। इसके तुरंत बाद सीजफायर की घोषणा हुई।
दूसरी ओर, ईरान ने इस सीजफायर को अपनी ‘रणनीतिक जीत’ बताया। उनका कहना था कि इजरायल को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन जानकारों का मानना है कि दोनों देशों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बहुत तेज़ हो गया था, और ट्रंप की कॉल ने उस दबाव को निर्णायक रूप से बढ़ाया।
यह सवाल अब ज़रूर उठ रहा है — क्या यह ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वापसी की शुरुआत है? उन्होंने इस मौके पर अपनी डिप्लोमैटिक ताकत दिखा दी है, जबकि वर्तमान अमेरिकी प्रशासन अब तक इस मुद्दे पर निष्क्रिय नजर आया। ट्रंप समर्थकों का दावा है कि यह कदम 2024 के चुनाव के लिए उनकी छवि मजबूत करेगा।