पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती इसको पंजाबी कॉलोनी जसपुर की रहने वाली अमरजीत कौर ने साबित किया है। अमरजीत कौर ने 55 वर्ष की आयु में उत्तराखंड बोर्ड की इंटरमीडिएट परीक्षा में 76 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। खास बात यह है कि परीक्षा की तैयारी के लिए उन्हाेंने यू-ट्यूब की मदद ली। उनके प्रदर्शन से उत्साहित परिजन उन्हें अब स्नातक की पढ़ाई के लिए भी प्रोत्साहित कर हरे हैं।
अमरजीत कौर ने बताया कि 1988 में उनकी शादी हुई थी। शादी से दो साल पहले 1986 में हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। पढ़ने का बहुत शौक था लेकिन बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी के कारण वह आगे पढ़ने के अपने अरमान पूरे नहीं कर सकीं। बच्चे अपने पैरों पर खड़े हुए तो उन्होंने मां को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और अमरजीत दोबारा पढ़ाई में जुट गईं। 38 साल बाद नए सिरे से शुरूआत करने पर पहले बहुत अजीब लगा लेकिन उनकी जिद और पढ़ाई के प्रति जुनून ने सब कुछ आसान कर दिया। वे कहती हैं कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। हमेशा जिज्ञासु बने रहना चाहिए।
बेटी एमबीए पास, बेटा कराता है यूपीएससी की कोचिंग
अमरजीत कौर ने बताया कि उनका मायका गदरपुर में हैं। उनके पति सुरेंद्र अरोड़ा कपड़े के कारोबारी हैं। उनकी बड़ी पुत्री शिवानी अरोरा एमबीए कर चुकी हैं, जबकि बेटा शिवम अरोड़ा यूपीएससी का कोचिंग सेंटर चलाता है। छोटा बेटा अपने पिता के साथ कारोबार देख रहा है। दिल्ली में उनकी नातिन श्रेया चावला ने कक्षा एक और उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा एकसाथ दी। दोनों को परिणाम भी साथ-साथ ही आया। उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज हमीरावाला से इंटरमीडिएट की परीक्षा का फार्म भरा और पूरी मेहनत कर इंदिरा गांधी राजकीय इंटर कॉलेज बढ़ियोवाला केंद्र से परीक्षा दी थी।
बेटे ने कहा मम्मी अब पूरे कर लो अरमान
अमरजीत कौर बताती हैं कि उनकी शुरू से ही ज्यादा पढ़ने की इच्छा थी। वे अक्सर परिवार में अपनी इस इच्छा को बताती रहती थी। अब जब बेटी की शादी हो गई और बेटे भी अपने पैरों पर खड़े हो गए तो बड़े बेटे ने उनसे कहा कि मम्मी अब आप अपनी पढ़ने की इच्छा पूरी कर सकती हैं। पति ने भी सहयोग किया। तब उन्होंने पहले कक्षा 11 की पढ़ाई की और उसके बाद इंटर की परीक्षा दी।
गरीब बच्चों और बुजुर्गों को पढ़ना चाहती हैं अमरजीत
55 साल की उम्र में इंटर की परीक्षा पास करने वाली अमरजीत कौर स्नातक करने के बाद अपनी शिक्षा को समाज के हित में लगाना चाहती हैं। इसके लिए उनके मन में गरीब बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ निरक्षर बुजुर्गों को भी शिक्षित करने योजना हैं। उन्होंने निरक्षर बुजुर्गों को प्रेरित करते हुए कहा कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। जब चाहे दृढ़ इच्छा शक्ति से जुट जाना चाहिए।