कानपुर देहात का द्रोणेश्वर मंदिर एक प्राचीन भारतीय धरोहर
भारत में आज भी युगों युगों की प्राचीन धरोहर, मंदिर और ऐतिहासिक स्थल हैं, जो उस काल को सजीव बनाए रखते हैं। कानपुर देहात के असालतगंज में एक ऐसा ही विशेष महत्व रखने वाला द्रोणेश्वर मंदिर है। यह प्राचीन मंदिर महाभारत काल की याद दिलाता है, लोग मानते हैं कि 5000 वर्ष पहले पांडव पुत्र अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य ने इसे स्थापित किया था। इस मंदिर की प्राचीन मोटी दीवारें और प्राचीन मूर्तियां इसके महत्व को सिद्ध करती हैं।
इस शिव मंदिर की प्राचीन कहानी लोगों को भावविभोर कर देती है। द्रोणेश्वर मंदिर की कहानी अद्भुत है। मान्यता है कि महाभारत में वीर धनुर्धर अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य राजा द्रुपद के निकट मित्र थे, जो एक ब्राह्मण पुत्र थे। द्रुपद ने द्रोणाचार्य को एक बार नाराज होकर अपने राज्य से निकाल दिया। इसके बाद द्रोणाचार्य ने इस क्षेत्र में (वर्तमान में असालतगंज) आकर एक शिवलिंग की स्थापना की और वहीं पूजा-अर्चना करने लगे।
एक दिन भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद द्रोणाचार्य ने अपने नाम से इस मंदिर के नाम को जोड़ने की विनती की, जिसके कारण इसका नाम द्रोणेश्वर पड़ा। द्रोणेश्वर मंदिर में दिव्य देवी की मूर्तियां भी हैं, एवं श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन के बाद उनके दर्शन भी करते हैं। लोक मान्यता के अनुसार इस चारदीवारी से घिरे मंदिर के चारों तरफ जंगल था, जिसका छोटा सा स्वरूप आज भी देखा जा सकता है। इस मंदिर का निर्माण का समय अज्ञात है, और लंबे समय से लोग यहाँ पूजा-अर्चना करने आ रहे हैं। इसके जीर्णोद्धार के लिए ग्रामीण सहयोग करते हैं और इसकी रखरखाव करते हैं।