जातीय जनगणना बदलेगी अब देश की सियासत..

मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद 1990 में देशभर में आरक्षण समर्थक और विरोधियो के बीच जबरदस्त टकराव देखने को मिला था.
90 के दशक में मंडल और कमंडल की राजनीति ने देश की सियासत को पूरी तरह से बदल दिया था और यही वो वक्त था जब देश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार होना शुरु हुआ था. अब तीन दशक के बाद देश की सियासत फिर से करवट ले रही है लेकिन इस बार बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती है.

मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद 1990 में देशभर में आरक्षण समर्थक और विरोधियो के बीच जबरदस्त टकराव देखने को मिला था.अगड़ों और पिछड़ों की लड़ाई सड़क तक आ गई थी. देश वैमनस्यता की आग में जल रहा था और ठीक उसी समय बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृषण आडवाणी रथ पर सवार होकर राम मंदिर के आंदोलन के लिए निकल पड़े थे.वीपी सिंह का ये दांव उस वक्त उल्टा पड़ गया और राम मंदिर के नाम पर सारी हिंदू जातिया एकजुट हो गई थी.अब करीब 33 साल बाद एक बार फिर मंडल की राजनीति देश की सियासत को बदलने जा रही है. जिसमें इस बार बिहार से ये पहल हुई है जहां नीतिश सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े पेश करके 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है.

दरअसल, जातीय जनगणना के आंकडे को हथियार बना कर इंडिया गठबंधन बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति को चुनौती दे रही है.इसकी शुरुआत भले ही बिहार से हुई हो लेकिन इसकी आंच अब यूपी तक महसूस की जा रही है.समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही थी और अब बिहार के बाद समाजवादी पार्टी इस मुद्दे पर और भी मुखर हो गई है.
सिर्फ अखिलेश ही क्यों अब तो कोई भी सियासी दल इससे पीछे नहीं है.प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने भी इस मुद्दे पर बीजेपी सरकार को घेरना शुरु कर दिया है. विपक्षी दलों के साथ-साथ अब बीजेपी के सहयोगी दलों का भी दबाव बढने लगा है.जातीय जनगणना का मुद्दा पिछड़ो और दलितो का बीजेपी से मोहभंग कर सकता है.यूपी में जहां पूरी सियासत ही जाति पर आधारित है और जहां राजभर और निषाद जैसे नेता ही जातिगत राजनीति से निकल कर सत्ता तक पहुंचे है. वहां इस मुद्दे ने उनकी भी नींद हराम कर रखी है. लिहाजा बिहार के बाद अब बीजेपी के ये सहयोगी भी सरकार पर दबाव बनाने लगे है.
हालांकि बीजेपी खुले मंच से ये आरोप लगा रही है कि कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों हिंदू मतों में विभाजन की राजनीति कर रहे है. जातिगत जनगणना भी इसी रणनीति का हिस्सा है. बहरहाल ये ऐसा मुद्दा है जो बीजेपी के गले की फांस बन गया है और विपक्ष के हाथ का बड़ा हथियार जिससे मुकाबला करना बीजेपी के लिए भारी पड़ रहा है.

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