सनातन शास्त्रों में निहित है कि ब्रह्मांड की रचनाकार मां कूष्मांडा सूर्यमंडल में निवास करती हैं। मां के मुखमंडल से तेज प्रकट होती है। इस तेज से समस्त ब्रह्मांड प्रकाशवान होता है। धार्मिक मत है कि मां कूष्मांडा की पूजा करने से साधक को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है।
- मां कूष्मांडा की पूजा करने से साधक को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
- ब्रह्मांड की रचनाकार मां कूष्मांडा सूर्यमंडल में निवास करती हैं।
- मां कूष्मांडा भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन साधक का मन ‘गति चक्र’ में अवस्थित होता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि ब्रह्मांड की रचनाकार मां कूष्मांडा सूर्यमंडल में निवास करती हैं। मां के मुखमंडल से तेज प्रकट होती है। इस तेज से समस्त ब्रह्मांड प्रकाशवान होता है। धार्मिक मत है कि मां कूष्मांडा की पूजा करने से साधक को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है। अगर आप भी मां कूष्मांडा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन इस विधि से मां की पूजा उपासना करें।
मां कूष्मांडा का स्वरूप
ममतामयी मां कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं। उनके हाथों में क्रमशः गदा, कलश, कमल, धनुष-बाण और कमंडल हैं। एक हाथ में माला है। इससे तीनों लोकों का कल्याण होता है। मां की सवारी सिंह है। मां कूष्मांडा अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन ब्रह्म बेला में उठें। इस समय सबसे पहले मां का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें। इसके पश्चात, घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर अपने आप को शुद्ध करें और नवीन वस्त्र धारण कर सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। अब पूजा गृह में निम्न मंत्र से मां का आह्वान करें-
1. या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2. ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’
3. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
अब पंचोपचार कर मां कूष्मांडा की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, हल्दी, चंदन, कुमकुम, दूर्वा, सिंदूर, दीप, अक्षत आदि चीजों से करें। शास्त्रों में निहित है कि मां कूष्मांडा को मालपुए पसंद है। अतः मां को प्रसाद में मालपुए अवश्य भेंट करें। पूजा के समय चालीसा का पाठ और मंत्र जाप अवश्य करें। अंत में आरती कर सुख, समृद्धि की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती कर फलाहार करें।