किसी भी महिला के शरीर का केंद्र यूटरस (Uterus) हो जाता है। हालांकि, इससे जुड़ी समस्याओं का पता लगाना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि लोग अक्सर इसके लक्षण कंफ्यूज करते हैं और अन्य आम बीमारियों से मेल खाते हैं। ऐसे में इन समस्याओं का पता लगाने के लिए डॉक्टर से उचित टेस्ट कराना जरूरी है।
हालांकि, इन सबसे पहले यूटरस में होना समस्याओं की पूरी जानकारी होना जरूरी है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे यूटरस से संबंधित समस्याओं के बारे में-
यूटरिन फाइब्रॉयड
यह युटरस में होने वाली नॉन कैंसर ग्रोथ है, जो एक महिला के बच्चे पैदा करने की उम्र के दौरान हो सकती है। यह एक आम समस्या है, जिससे महिला को किसी खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। इसे मायोमा या फाइब्रोमा भी कहते हैं। यह यूटरस के एक या दोनों तरफ हो सकते हैं। यह मसल और फाइब्रस टिश्यू के बने हुए बिनाइन ग्रोथ (Non-Cancer Growth) हैं, जो अगर आकार में बड़े होते हैं तो पेट में दर्द या हैवी पीरियड जैसी दिक्कत पैदा कर सकते हैं।
यूटरीन ब्लीडिंग
यूटरस की किसी भी प्रकार की असामान्य ब्लीडिंग को यूटरीन ब्लीडिंग कहते हैं। पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग, दो पीरियड्स के बीच में या इंटरकोर्स के बाद ब्लीडिंग या लंबे समय तक पीरियड्स की ब्लीडिंग होती रहे, तो यह यूटरिन ब्लीडिंग होती है। तनाव, हार्मोनल असंतुलन, पीसीओएस, थायरॉइड आदि की समस्या होने से भी यूटरीन ब्लीडिंग हो सकती है। टेस्ट और अन्य परीक्षण के बाद कारण पता लगने पर कारण के अनुसार दवाइयां और उचित मैनेजमेंट से इसका इलाज किया जाता है।
एंडोमेट्रियोसिस
यूटरस जिस लाइन से घिरा हुआ होता है, उसे एंडोमेट्रियम कहते हैं। जब शरीर में अन्य जगहों पर जैसे ओवरी के ऊपर या नीचे, फैलोपियन ट्यूब पर या ब्लैडर के ऊपर एंडोमेट्रियम बनने लगे तो ये एंडोमेट्रियोसिस कहलाता है। इस दौरान पेल्विक दर्द, शारीरिक संबंध बनाने के दौरान और बाद में दर्द, हैवी पीरियड्स, पेट के निचले हिस्से में दर्द, थकान और स्पॉटिंग की समस्या हो सकती है। दवा, हार्मोन थेरेपी और गंभीर मामलों में सर्जरी इसका इलाज है।
यूटरीन प्रोलैप्स
इसमें यूटरस के आसपास की मांसपेशियां, जिसे पेल्विक फ्लोर मसल कहते हैं, ये कमजोर या डैमेज हो जाती हैं, जिससे यूटरस वजाइना के ऊपर लटक सा जाता है। माइल्ड से सिवीयर तक इसके चार स्टेज होते हैं। प्रेग्नेंसी, मोटापा, कब्ज या वजाईनल डिलीवरी इसके कारण हो सकते हैं। इसे सर्जिकल और नॉन सर्जिकल तरीके से ठीक किया जाता है। नॉन सर्जिकल तरीकों में एक्सरसाइज, डाइट और अच्छी जीवनशैली शामिल है।