रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने बुधवार को भारतीय नौसेना को मध्यम दूरी के माइक्रोवेव आब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (एमआर-एमओसीआर) सौंपा है। यह आसानी से दुश्मन की रडार में नहीं आता। इसमें उपयोग की गई विशेष तकनीक इसके चारों ओर माइक्रोवेव शील्ड बनाकर रडार के संकेतों को अस्पष्ट कर देती है। इसे डीआरडीओ की रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर में विकसित किया गया है।
विशेष प्रकार के फाइबर का हुआ है इस्तेमाल
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, इस मध्यम दूरी के चैफ रॉकेट में कुछ माइक्रोन व्यास वाले विशेष प्रकार के फाइबर का इस्तेमाल किया गया है। जब इसे दागा जाता है तो पर्याप्त समय और क्षेत्र में यह माइक्रोवेव आब्सक्योर क्लाउड का निर्माण करता है। इस तरह रेडियो फ्रीक्वेंसी पकड़ने वाले उपकरणों से बचने के लिए एक कवच का काम करता है।
एमआर-एमओसीआर के पहले चरण के परीक्षणों को भारतीय नौसेना के जहाजों से सफलतापूर्वक पूरा किया गया था। दूसरे चरण के परीक्षणों के बाद नौसेना की ओर से इसे मंजूरी दे दी गई। योग्यता को पूरा करने वाले सभी एमआर-एमओसीआर को सफलतापूर्वक भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है।
आत्मनिर्भर बनाने की दिशा बढ़ा कदम
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एमआर-एमओसीआर के सफल विकास पर डीआरडीओ और भारतीय नौसेना की सराहना की है। उन्होंने इस तकनीक को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक और कदम बताया।